गौरतलब है कि अब जनता के बीच किसी से यह तथ्य छिपा नहीं रह गया है कि संघ - भाजपा सरकार में नितांत भ्रष्टतंत्र के चलते तीब्रगति से मंहगाई और बेरोजगारी बढ़ने के साथ-साथ सभी स्तरों पर रिश्वतखोरी, धांधली और भ्रष्टाचार चर्म सीमा पर पहुँच गया है। सर्वविदित है कि जिन राज्यों के विधानसभा चुनाव में जनता भाजपा को शिकस्त देकर उसे आत्म चिंतन और मंथन के लिए सबक सिखाते हुए आगाह करती है वहाँ पर भी भाजपा अन्य राजनैतिक दलों के विधायकों की खरीद - फरोख्त करके साम - दाम - दंड - भेद की कुटिल नीति अपनाकर येनकेन प्रकारेण अपनी सरकार बनाने में सफल हो ही जाती है। संघ समर्थित भाजपा सरकार के ऎसी रहस्यमयी सफलता के चलते उसके नेताओं, कार्यकर्ताओं और विभागीय कट्टर समर्थक अधिकारियों को सत्ता में बैठकर मलाई चाटने की चाहत में बहुत उत्साह होता है। देश के वर्तमान विकृत राजनैतिक परिदृश्य में भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं की ऎसी मानसिकता के होने की बात कुछ हद तक तो समझ में आती है किन्तु जब ऎसी घिनौनी मानसिकता के शिकार भिन्न-भिन्न विभागों के अधिकारीगण होते हैं और विशेषकर जब उच्च शिक्षा क्षेत्र का अधिकारी भी ऎसे निंदनीय कार्यों में शामिल होकर बेइन्तहाँ रुचि लेकर प्रत्यक्ष - परोक्ष रूप से समर्थन करने लगे तो ऎसी उत्पन्न निराशाजनक की स्थिति में उसकी घोर निंदा होने के सिवाय और कुछ नहीं हो सकता है। उक्त क्रम में उल्लेखनीय है कि वर्तमान में संघ समर्थित भाजपा सरकार के चाटुकार दलालों में राजीव गांधी विश्वविद्यालय ईटानगर का रिश्वतखोर - भ्रष्ट कुलपति साकेत कुशवाहा का नाम विगत माह से विवादों से घिरा होने के कारण चर्चा में है। संघी दलाल भ्रस्टाचारी और रिश्वतखोर साकेत कुशवाहा के मिसाल को सिलसिलेवार समझ कर यह स्पष्ट पुष्टि की जा सकती है कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षिक योग्यता, गुणवत्ता और अनुभव के आधार पर नियुक्ति नहीं मिलती है बल्कि उसके लिए संघ भाजपा की चाटुकारिता में अग्रणी दलाल होना आवश्यक होता है। मुख्यतः समाज के जो लोग संघ और भाजपा की चाटुकारिता और दलाली में जितना अधिक निपुण हैं वे उतना ही अधिक सफलता पाने में भी अग्रणी हैं। बता दें कि आरजीयू ईटानगर का कुलपति नियुक्त होने के पहले साकेत कुशवाहा बिहार में भाजपा समर्थित नीतीश सरकार के पिछले शासनकाल में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय का भी कुलपति नियुक्त किया गया था जहाँ साकेत कुशवाहा अपने सीमांत रिश्वतखोरी, धांधली, भ्रस्टाचार और गलत बयानबाजी के कारण सदैव विवादों में घिरा रहा। उसके विरोध में विश्वविद्यालय के हजारों छात्रों और कर्मचारियों के अलग - अलग संगठनों ने रोषपूर्ण प्रदर्शन करके जगह - जगह पर कई बार उसका पुतला फूंका और उससे कुलपति पद छोड़ने की मांग किया । परंतु संघ भाजपा की चाटुकारिता, दलाली और तलवा चाटने में निपुण साकेत कुशवाहा न केवल ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय का कुलपति बनकर झूठी सफलता हासिल किया अपितु उसके विरोध में हजारों प्रदर्शनकारियों के आवाज उठाने के बावजूद भी उसके खिलाफ सरकार ने कोई कार्यवाही ही नहीं किया। और, इतना ही नहीं बल्कि बिहार के मिथिला विश्वविद्यालय में उसके कार्यकाल पूरा होते ही अक्तूबर 2018 में उसको संघ समर्थित मोदी सरकार में अरुणाचल प्रदेश के राजीव गांधी विश्वविद्यालय ईटानगर का कुलपति नियुक्त कर दिया गया जिससे उसका मनोबल रिश्वतखोरी, धांधली और भ्रस्टाचार के प्रति बेइन्तहाँ बढ़ता गया और बेलगाम होकर रिश्वतखोरी, धांधली और भ्रस्टाचार के जरिए अकूत धन कमाने की हवस बढ़ती गयी। यह मसला विस्तृत होने के कारण अभी यहीं नहीं खत्म होता है बल्कि मसले से जुड़े आगे के कई तथ्य हैरान कर देने वाली हैं। अपने संघी दलाल बाप सुरेन्द्र सिंह कुशवाहा (Surendra Singh Kushwaha) की मदद से संघ भाजपा में पैठ मजबूत करके राजीव गांधी यूनिवर्सिटी का द मोस्ट करप्ट वीसी साकेत कुशवाहा (The most currupt VC Saket Kushwaha) न केवल अपनी सफलता पाने में शातिर खिलाड़ी निकला बल्कि उसने अपनी सगी बहन निर्मला एस मौर्य (Nirmala S. Maurya) को भी भाजपा शासित उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर का कुलपति नियुक्त कराने में शातिराना दिखाया और उसके साथ मिथ्यात्मक लेखों के प्रकाशन के जरिए अपने मुँह मियां मिट्ठू बनकर भोली-भाली जनता के बीच झूठी वाहवाही लूटने का भी प्रयास किया। चूँकि पिछड़े वर्ग के मौर्य - कुशवाहा समुदाय में बहुत कम लोग ही उच्च शिक्षित और उच्च पदस्थ हैं, अतः मिथ्यात्मक और भ्रामक प्रकाशित खबरों के जरिए इसको अपने समाज के कुछेक मुर्ख और कम पढ़ेलिखे लोगों से सराहना भी मिली जिससे इसका अहंकार और तानाशाही सातवें आसमान पर पहुँच गया। इसी बीच जून - जुलाई 2019 में राजीव गांधी विश्वविद्यालय ईटानगर में रिक्त प्रोफेसर पदों का विज्ञापन निकला जिसके अंतर्गत देश - विदेश के कई विश्वविद्यालयों एवं तकनीकी संस्थानों में प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष, डीन और डायरेक्टर रह चुके अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रोफेसर डॉ. विश्व नाथ मौर्य ने अभ्यर्थी के रूप में प्रोफेसर के लिए आवेदन किया। पहले से ही रिश्वतखोरी, धांधली और भ्रस्टाचार में संलिप्त साकेत कुशवाहा ने डॉ. विश्व नाथ मौर्य से प्रोफेसर नियुक्ति के लिए मोटी रकम की रिश्वत लेने के लिए टेलीफोन और व्हाटस्अप के जरिए बातचीत करके अपने छोटे भाई अनुराग कुशवाहा को मध्यस्थ बनाकर कई बार वाराणसी और दिल्ली में मीटिंग किया। भ्रस्ट वीसी साकेत कुशवाहा के द्वारा रिश्वत की डीलिंग में करीब छह माह का समय लग गया किंतु प्रोफेसर डॉ. विश्व नाथ मौर्य ने यथास्थिति को जानने के बाद रिश्वत देने से इंकार करते हुए कहा कि मैं पर्याप्त शिक्षित, योग्य एवं अनुभवी अभ्यर्थी हूँ जिसके आधार पर ही देश - विदेश के कई विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष, डीन और डायरेक्टर के रूप में मेरी नियुक्ति होती रही है। और, मैं रिश्वत के लेनदेन एवं भ्रस्टाचार के खिलाफ हूँ, इसके अलावा मेरे पास रिश्वत देने के लिए कोई रकम भी नहीं है। भ्रष्ट वीसी साकेत कुशवाहा और उसके भाई अनुराग कुशवाहा (Anurag Kushwaha) ने प्रो. विश्व नाथ मौर्य को मीटिंग में अवगत कराया कि जो अभ्यर्थी रिश्वत देते हैं, आमतौर से उन्हीं अभ्यर्थियों का चयन किया जाता है और अन्य अभ्यर्थियों को येनकेन प्रकारेण स्क्रीनिंग लिस्ट या इंटरव्यू में बाहर कर दिया जाता है जिसे सुनकर प्रो. मौर्य को बड़ी निराशा और हताशा हुई। और, अंत में उन्होंने साकेत कुशवाहा से चुनौती देते हुए यह कहा कि यदि रिश्वत न देने के कारण योग्य अभ्यर्थियों को जानबूझकर नियुक्ति प्रक्रिया में सौतेला व्यवहार करके बाहर कर दिया जाता है तो मैं जानना चाहूंगा कि राजीव गांधी विश्वविद्यालय ईटानगर के प्रोफेसर की नियुक्ति में मेरे आवेदन पत्र में क्या पक्षपाती व्यवहार होता है? बता दें कि उसके बाद कोरोना महामारी के कारण आरजीयू में प्रोफेसर के नियुक्ति की प्रक्रिया लम्बे समय तक टलती रही और 16 जनवरी 2021 को योग्य अभ्यर्थियों का प्रोविजनल स्क्रीनिंग लिस्ट जारी किया गया जिसमें आरजीयू के भ्रस्ट वीसी साकेत कुशवाहा के साजिश एवं पद का दुरुपयोग के चलते प्रो. मौर्य को यूजीसी के मानकों को दरकिनार करते हुए मनमाने ढंग से
जीरो एपीआई स्कोर देकर अयोग्य ठहरा दिया गया।
उक्त क्रम में यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिस प्रोफेसर डॉ. विश्व नाथ मौर्य को विश्व के यूएसए, जापान, जर्मनी, फ्रांस, इटली, न्यूजीलैंड, आस्ट्रिया, मलेशिया अल्जीरिया, नाइजीरिया और भारत आदि के IEEE समेत पीर रिव्यूड इंटरनेशनल जर्नल में
उनके सैकड़ों शोधपत्रों एवं पुस्तकों के प्रकाशन से देश - विदेश के कई विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष, परीक्षा नियंत्रक, डीन, डायरेक्टर जैसे उच्च पदों पर न केवल नियुक्ति मिली अपितु उन्होंने 20 साल से अधिक सेवा भी किया है और अपने विशेष योग्यता, गुणवत्ता और उत्कृष्ट शोधकार्यों एवं उपलब्धियों के लिए भारत गौरव, राष्ट्रीय शिक्षा रत्न, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम एक्सीलेंस अवार्ड समेत पचीसों राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित भी किये जा चुके हैं। यहाँ तक कि वर्तमान में भी प्रो. विश्व नाथ मौर्य यूएसए और भारत के कई इंटरनेशनल जर्नल के एडीटर - इन -चीफ हैं और यूएसए में होस्टन स्थित अंतर्राष्ट्रीय मान्यता संगठन (IAO, Houston) के कमीशन मेम्बर भी हैं जो पूरे विश्व के विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों को गुणवत्ता के आधार पर मान्यता प्रदान करती है। उक्त क्रम में उल्लेखनीय है कि विगत 10 - 11 वर्षों में देश के आईआईटी खड़गपुर/मद्रास, आईआईएम रोहतक, आईआईआईटी इलाहाबाद (प्रयागराज), बीएचयू वाराणसी, उत्कल विश्वविद्यालय भुवनेश्वर, हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय एवं हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला, इंडियन स्कूल ऑफ माइंस धनबाद, नीटी मुंबई, नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूडीसियल साइंसेज, कोलकाता समेत पचासों प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों और संस्थानों में प्रो. मौर्य को करीब 700 -1100 एपीआई स्कोर के पाने के आधार पर सहायक प्रोफेसर और रीडर से लेकर प्रोफेसर, रजिस्ट्रार, निदेशक और कुलपति सभी पदों के लिए साक्षात्कार के लिए बुलाया गया है। इतना ही नहीं अपितु आस्ट्रेलिया महाद्वीप के फिजी विश्वविद्यालय, फिजी में गणित एवं सांख्यिकी के विभागाध्यक्ष रह चुके प्रोफेसर डॉ0 विश्व नाथ मौर्य को मई 2015 में ही कॉपरस्टोन विश्वविद्यालय, किटवे, जाम्बिया (साउथ अफ्रीका) में साइंस एंड टेक्नोलॉजी संकाय के बतौर प्रोफेसर एवं डीन के पद पर नियुक्ति मिली थी। ऎसे में बहुत बड़ा प्रश्न उठता है कि भाजपा सरकार के संरक्षण में पल रहा राजीव गांधी विश्वविद्यालय ईटानगर का रिश्वतखोर भ्रस्ट कुलपति साकेत कुशवाहा अपने पद का दुरुपयोग करते हुए यूजीसी के मानकों को ताख पर रखकर प्रो. मौर्य को जीरो एपीआई स्कोर देकर अयोग्य कैसे ठहरा सकता है?
शिक्षा जगत में अंतर्राष्ट्रीय पटल पर प्रसिद्धि प्राप्त प्रोफेसर डॉ. विश्व नाथ मौर्य को आरजीयू के रिश्वतखोर भ्रष्ट वीसी साकेत कुशवाहा (The most currupt VC Saket Kushwaha) ने यूजीसी के मानकों की अनदेखी करके अपने पद का दुरुपयोग करते हुए भले ही जीरो एपीआई स्कोर देकर अपनी नीचता, तुच्छता, महामूर्खता या अहंकार का परिचय दिया हो किंतु क्या भ्रष्ट कुलपति साकेत कुशवाहा सुप्रीम कोर्ट में प्रो. मौर्य द्वारा याचिका दाखिल किए जाने पर अपने को सही ठहराकर बचाव कर पायेगा? और, इससे भी बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या बड़ी रकम के रिश्वत लेने की हवस में कहीं भ्रष्ट वीसी साकेत कुशवाहा को मौत की बलि न चढ़ना पड़ जाए? क्या किसी योग्य अभ्यर्थी के साथ ऎसे भ्रष्टाचारी रिश्वतखोर व्यक्ति के द्वारा इतना अधिक अन्याय किया जाना क्षम्य हो सकता है और उसे कोई कठोर दंड न देकर छोड़ दिया जाए? ऎसे अनेकानेक गम्भीर प्रश्नों का जवाब लोगों के सामने तब आएगा जब उक्त मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँचेगा और प्रोफेसर डॉ. विश्व नाथ मौर्य द्वारा उसके खिलाफ 10 - 20 करोड़ रुपये के मानहानि का दावा दाखिल होगा। और, यदि भ्रष्टाचारी साकेत कुशवाहा शासन - प्रशासन की मिली भगत से कोर्ट को भी अपने पक्ष में करने में सफल रहा तो क्या ऎसे भ्रष्टाचारी और रिश्वत के हवसी व्यक्ति को देश की जनता छोड़ देगी? प्रो. मौर्य ने घोर आपत्ति जताते हुए कहा कि अपने पद का सीमांत दुरुपयोग करने वाले भ्रष्टाचारी साकेत कुशवाहा को अपने कुकृत्यों का खामियाजा तो देर-सबेर भुगतना ही पड़ेगा। भाजपा सरकार कब तक ऎसे भ्रष्टाचारियों को संरक्षण प्रदान करके उसे बचा पायेगी? पाप का घड़ा भर जाने के बाद उसका टूटना निश्चित हो जाता है, ठीक उसी प्रकार साकेत कुशवाहा भी संघ - भाजपा का संरक्षण पाकर अपने अहंकार और तानाशाही में बेइंतहा पागल होकर अन्याय, भ्रस्टाचार और रिश्वतखोरी के सीमा को पार कर चुका है, अतएव जनहित में ऎसे अन्यायी को कठोर सजा मिलना ही चाहिए। आपको बता दें कि भ्रष्टाचार से जुड़े उक्त विवादित प्रकरण को लेकर भिन्न-भिन्न समाचार पत्रों में खबरें प्रकाशित हुई हैं जिसमें प्रो. मौर्य ने केन्द्र सरकार से आरोपी साकेत कुशवाहा को उसके पद से तत्काल बर्खास्त करके गिरफ्तारी की मांग उठाया था किन्तु अभी तक आरोपी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी जो चिंतनीय है। इससे स्पष्ट पुष्टि हो जाती है कि मुख्यतः संरक्षण प्राप्त होने के कारण ही केन्द्र सरकार ने आरोपी साकेत कुशवाहा के बर्खास्तगी और गिरफ्तारी पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं किया और उसको बचाने के प्रयास में सरकार की मिलीभगत है अन्यथा अब तक कम से कम सरकार को भ्रष्टाचार से जुड़े उक्त संवेदनशील और गम्भीर मामले में जाँच प्रक्रिया के लिए त आदेश कर ही देना चाहिए था।
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