गौरतलब है कि हमारा भारतीय समाज भिन्न-भिन्न जातियों और धर्मों में बंटा हुआ है। मोटे तौर पर हमारा भारतीय समाज धार्मिक दृष्टिकोण से सवर्ण और बहुजन के दो वर्गों में विभाजित है। जहाँ वर्तमान में सवर्णों की आबादी लगभग 15 फीसदी और शेष 85 फीसदी आबादी बहुजनों की है। बता दें कि भिन्न-भिन्न धर्मशास्त्रों में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर ऎसा माना जाता रहा है कि सदियों से सवर्ण समाज के लोग शैक्षिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से अपेक्षाकृत अधिक सम्पन्न होने के कारण बहुजन समाज के शोषक की भूमिका में रहकर सदैव उत्पीड़न करते आ रहे हैं। हालांकि, यह तथ्य भले ही पूर्णतः सत्य न होकर आंशिक रूप से ही सत्य हो किंतु इतना सच्चाई तो निश्चित तौर पर स्पष्ट परिलक्षित होता है कि सवर्ण और बहुजन दोनों वर्गों में सदैव से ही अपने अस्तित्व और जीविका को लेकर संघर्ष और तनावपूर्ण की स्थिति बनी हुई है। भिन्न-भिन्न अवसरों पर हुई घटनाओं को लेकर आम तौर से ऎसा लोगों का विश्वास रहा है कि मनुवादी और सामंतवादी सोच - विचारधारा के कारण सवर्ण समाज का व्यक्ति बहुजन समाज के व्यक्तियों के समग्र विकास में विशेष रूप से बाधक और विद्ध्वंषक बनकर अभिशाप के रूप में खड़ा हुआ है। हिन्दू धर्मशास्त्रों में पौराणिक कथाओं के अनुसार धनुर्धारी अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ ठहराने के लिए तथाकथित गुरु द्रोणाचार्य ने अपने छल-कपट - इर्ष्या - द्वेष की गलत मंशा और निम्नकोटि के शातिर एवं कुटिल स्वभाव के कारण दलित समाज के महान धनुर्धर एकलव्य के साथ उनका दाहिना अँगूठा दक्षिणा में दान स्वरूप मांगकर या छीनकर घोर अन्याय किया था जिसके फलस्वरूप बहुजन समाज के अधिकांश शिक्षित वर्ग के लोगों ने द्रोणाचार्य को महान धनुर्धर एकलव्य के साथ उसके छल - कपट के जरिए ठगी और धोखा करने के लिए दोषी ठहराते हुए न केवल उस पर गम्भीर आरोप लगाया अपितु द्रोणाचार्य को एक कलंकित गुरु की संज्ञा देते हुए बहुजन समाज के लिए बहुत बड़ा अभिशाप ठहराया। यही कारण है कि आज भी कतिपय शिक्षण संस्थानों में द्रोणाचार्य के नाम से पुरस्कार दिए जाने पर बहुजन समाज के लोगों द्वारा सवाल खड़ा करते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त किया जाता हैr सही मायने में एक प्रोफेसर (शिक्षक - गुरु) और न्यायाधीश की कोई जाति- धर्म नहीं होती है, इन दोनों को ही जाति, धर्म और दल से ऊपर उठकर सभी के साथ समभाव के साथ व्यवहार करना चाहिए और जरूरत पड़ने पर इनको हर सम्भव निष्पक्षता और पारदर्शिता का परिचय देते हुए मिसाल बनकर आम जनता के बीच प्रेरणा का श्रोत बनना चाहिए । किन्तु नितांत कलुषित और विषाक्तपूर्ण सामाजिक परिवेश में एक प्रोफेसर या न्यायधीश को भी ऎसा आदर्श हो पाना असम्भव जैसा हो गया है क्योंकि वह अपने पद पर पेशा और सेवा में रहकर अपने अनेकानेक विकारों और विसंगतियों को दूर न कर पाने के कारण जाति, धर्म और दल में बंधकर खुलेआम अपने पद का दुरुपयोग करते हुए घोर पक्षपात करता है।
उल्लेखनीय है कि देश की आजादी के पहले जब तक बहुजन समाज के लोग अति पिछड़े थे, तब तक उनका शोषण मुख्य रूप से सवर्ण समाज के लोग ही करते थे किन्तु आजादी के बाद विशेषकर आरक्षण लागू होने के बाद बहुजन समाज के लोगों में भी शैक्षिक, आर्थिक और राजनैतिक विकास होने से उनके सोच - विचार और व्यवहार में अभूतपूर्व परिवर्तन आया। बहुजन समाज के जो लोग बौद्धिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से कुछ हद तक अग्रणी होने में कामयाब हुए, वे लोग सवर्णों से कहीं कई गुना ज्यादा अपने समाज के कमजोर लोगों के लिए घातक और विद्ध्वंषक के रूप में साबित हुए। 4आम तौर से बहुजन समाज का कोई भी व्यक्ति जो किसी भी क्षेत्र में सफल हुआ, वह अपने ही समाज के अन्य लोगों को शोषण एवं दमनकारी नीतियों से कुचलने का हर सम्भव प्रयास किया। अतएव, अब स्थिति पहले जैसी नहीं रह गयी कि यदि बहुजन समाज का कोई व्यक्ति शिक्षा क्षेत्र में किसी शिखर तक सफलता प्राप्त करना चाहता है तो उसका विरोध तथाकथित गुरु द्रोणाचार्य की तरह केवल सवर्ण समाज के लोग ही करेंगे अपितु उनसे भी कई गुना ज्यादा विरोध बहुजन समाज के कथित तौर पर सफल व्यक्तियों द्वारा ही किया जायेगा। ऎसे में अब यह आरोप लगाना पूर्णतः गलत होगा कि बहुजन समाज के प्रतिद्वंदी और दुश्मन केवल सवर्ण समाज के लोग ही हैं। ऎसे अनेकों मिसाल उपलब्ध हैं जिससे यह स्पष्ट पुष्टि की जा सकती है कि सवर्णों से कही ज्यादा बाधक, घातक और विदूषक बहुजन समाज के लोग ही हैं जो अपने समाज के अन्य लोगों के प्रगति में बाधक और विद्ध्वंषक के रूप में खड़े होकर अपनी नीचता और तुच्छता की सभी हदें पार कर जाते हैं।
उक्त क्रम में उल्लेखनीय है कि वर्तमान में भी बहुजन समाज के लिए शिक्षा क्षेत्र में सफल होना अन्य क्षेत्रों से कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। यही कारण है कि बड़े ही मुश्किल से कुछेक गिनेचुने लोग ही उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी हो पाए हैं जिनका सामाजिक और नैतिक कर्तव्य बनता है कि वे अपने समाज के अन्य लोगों को और आगे बढ़ाने में गति प्रदान करें परन्तु अत्यंत खेद होता है कि वे ऎसा न करते हुए विपरीत इसके वे कंस मामा बनकर विषैले सर्प और नाग की तरह अपूर्तिनीय क्षति पहुँचाने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं जिससे उनके समाज का कोई दूसरा व्यक्ति उस क्षेत्र में अग्रणी न हो सके। वैसे तो इस सच्चाई को समझने के लिए अनेकानेक मिसाल हैं किन्तु उनमें से अभी हाल ही में घटित एक दृष्टांत का यहां उल्लेख करना प्रासंगिक होगा। प्रश्नगत सन्दर्भ में बता दें कि देश - विदेश के कई विश्वविद्यालयों और तकनीकी शिक्षण संस्थानों में प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष, परीक्षा नियंत्रक, डीन और डायरेक्टर रह चुके और दर्जनों राष्ट्रीय - अन्तराष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित प्रोफेसर डॉ0 विश्व नाथ मौर्य ने अरुणाचल प्रदेश के राजीव गांधी विश्वविद्यालय ईटानगर में गणित एवं सांख्यिकी के लिए रिक्त प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया था जहाँ वर्तमान में उनके ही समाज के उनका करीबी साकेत कुशवाहा कुलपति है। बता दें कि साकेत कुशवाहा ने पहले तो प्रो. मौर्य से प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए रिश्वत लेने के लिए टेलीफोन पर वार्ता और सन्देश के जरिए दिल्ली और वाराणसी में कई बार मीटिंग किया किंतु प्रो. मौर्य अपने पर्याप्त शैक्षिक योग्यता, गुणवत्ता, अनुभव और प्रकाशित सैकड़ों शोधपत्रों एवं पुस्तकों को दृष्टिगत रखते हुए रिश्वत देने से इंकार कर दिया जिससे भ्रस्ट वीसी साकेत कुशवाहा ने नाराज होकर आक्रोश में आकर ईर्ष्या, विद्वेष और प्रतिषपर्धा की गलत मंशा से अपने पद का दुरुपयोग करते हुए यूजीसी के मानकों को ताख पर रखकर प्रोफेसर डॉ विश्व नाथ मौर्य को मनमाने ढंग से शून्य एपीआई स्कोर देकर अयोग्य ठहरा दिया। जब प्रो. मौर्य को आरजीयू के वेबसाइट पर उपलब्ध 16 जनवरी 2021 के नोटिफिकेशन के जरिए इसकी जानकारी हुई कि भ्रष्ट वीसी साकेत कुशवाहा को रिश्वत न देने के कारण उन्हें जबरन शून्य एपीआई देकर अयोग्य ठहराया गया है तो उन्होंने अपने आवेदन पत्र के समर्थन में सभी साक्ष्यों के साथ प्रतिवेदन के तहत आपत्ति जताया जिसके उपरांत राजीव गांधी विश्वविद्यालय ईटानगर के रजिस्ट्रार ने अपने 29 जनवरी का सर्कुलर जारी करके उनके व्हाटस्अप के जरिए यह अवगत कराया कि उनके आवेदन पत्र का भलीभाँति जांच किया गया है और अभ्यर्थियों के प्रतिवेदन के आधार पर उनके आवेदन पत्रों की समीक्षा करके पुनः अभ्यर्थियों की फाइनल स्क्रीनिंग लिस्ट जारी किया जायेगा जिससे प्रोफेसर मौर्य स्तब्ध होकर प्रतिक्रिया स्वरूप भिन्न-भिन्न समाचार पत्रों में सम्बंधित विवादित प्रकरण को विस्तार के साथ प्रकाशित करवाया।
आपको बता दें कि राजीव गांधी विश्वविद्यालय ईटानगर के रिश्वतखोर - भ्रष्ट कुलपति साकेत कुशवाहा के कार्यकाल में रिक्त पदों के नियुक्ति की प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर हो रही धांधली, रिश्वतखोरी और भ्रस्टाचार के चलते कुप्रभावित अभ्यर्थियों के बढ़ते गतिरोध के कारण विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रतिवेदन के लिए 23 जनवरी 2021 का समय दिया था। परन्तु हैरत की बात है कि राजीव गांधी यूनिवर्सिटी द्वारा 22-23 दिन बीत जाने के बावजूद भी अभी तक योग्य अभ्यर्थियों की फाइनल स्क्रीनिंग लिस्ट जारी नहीं किया जा सका जो अपने आप में बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है। विश्वविद्यालय के द्वारा जारी 29 जनवरी के सर्कुलर के अनुसार यदि योग्य अभ्यर्थियों की पहले से ही प्रापर स्क्रीनिंग की गयी थी तो क्या समीक्षा में इतना अधिक समय लगना चाहिए? और, यदि विश्वविद्यालय समीक्षा में इतना अधिक समय लगा रहा है तो उसका राज तो स्वतः स्पष्ट हो जाना चाहिए कि दाल में कुछ काला ही नहीं बल्कि पूरी दाल ही काली है। गौरतलब है कि ऎसी अनियमितता होने की संभावना के बारे में आरजीयू का भ्रष्ट वीसी साकेत कुशवाहा अपने मीटिंग में प्रोफेसर डॉ0 विश्व नाथ मौर्य से पहले ही चर्चा किया था कि जिन योग्य अभ्यर्थियों से रिश्वत नहीं मिलता है, उन्हें विश्वविद्यालय के वीसी के साठगाँठ के जरिए विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए स्क्रीनिंग अथवा इंटरव्यू में येनकेन प्रकारेण बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है और आमतौर पर अन्तिम रूप से चयन उसी अभ्यर्थी का किया जाता है जो रिश्वत दिया होता है। भ्रष्ट वीसी साकेत कुशवाहा और उसके छोटे भाई अनुराग कुशवाहा ने अलग-अलग मीटिंग में प्रो. विश्व नाथ मौर्य को यह अवगत कराया कि अभ्यर्थियों द्वारा लिए जाने वाली मोटी रकम की रिश्वत में सम्बंधित लोगों के बीच बंदरबांट भी होता है जिससे नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल सभी सम्बंधित अधिकारी भरपूर सहयोग करते हैं और यदि रिश्वत लिये जाने का कभी कोई पर्दाफाश भी होता है तो शासनसत्ता और कुलपति की मिलीभगत से सभी सम्बंधित अधिकारी लोग अपने-अपने को बचाने के लिए पीड़ित पक्ष की आवाज को दबा देते हैं। अतएव, विश्वविद्यालयों के नियुक्ति प्रक्रिया में चल रही बड़े पैमाने पर रिश्वतखोरी का पर्दाफाश बड़ी मुश्किल से 1 फीसदी ही हो पाता है जिसे सभी सम्बंधित लोग मिलजुल कर दबाने में सफल हो जाते हैं। शिक्षा क्षेत्र में उच्च पदों पर 20 वर्ष तक सेवा कर चुके पर्याप्त अनुभवी प्रोफेसर डॉ0 विश्व नाथ मौर्य को भ्रष्ट वीसी साकेत कुशवाहा की रहस्यमयी बात को समझने में ज्यादा समय नहीं लगा किन्तु भ्रस्ट वीसी से उनकी मुख्यतः चार दलीलें थीं। प्रथम दलील यह थी कि एक अभ्यर्थी के रूप में वह पर्याप्त शिक्षित, योग्य एवं अनुभवी हैं। दूसरी दलील यह थी कि प्रोफेसर नियुक्ति के लिए उनके पास रिश्वत देने के लिए कोई रकम ही नहीं है। तीसरी दलील यह थी कि वह रिश्वतखोरी, धांधली और भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं और चौथी दलील यह कि यदि उन्हें रिश्वत देकर ही प्रोफेसर की नियुक्ति लेनी होती तो वह इसके पहले बीएचयू जैसे किसी अन्य विश्वविद्यालय में ही नियुक्ति ले लिए होते और अब तक करीब 50 वर्ष की उम्र में अन्य भ्रष्टाचारियों की तरह वह भी कई करोड़ रुपये के मालिक होते। फिलहाल, भ्रष्ट वीसी को रिश्वत न देने से उसकी क्रिया - प्रतिक्रिया के जरिए प्रो. मौर्य को कुछ पहले ही अंदेशा हो गया था कि भ्रष्ट वीसी साकेत कुशवाहा रिश्वत न पाने के कारण अपने पद का दुरुपयोग करते हुए उनके साथ गद्दारी करने के लिए अपनी नीचता और तुच्छता की सभी हदें पार कर सकता है और अंततः वही हुआ जिसकी उन्हें पहले से आशंका थी। बता दें कि द मोस्ट करप्ट वीसी साकेत कुशवाहा (The most currupt VC Saket Kushwaha) ने यूजीसी के मानकों को दरकिनार करते हुए प्रो. विश्व नाथ मौर्य (Prof. Vishwa Nath Maurya) को शून्य एपीआई स्कोर देकर अपने मनमाने ढंग से स्क्रीनिंग में ही अयोग्य ठहरा कर अपनी सीमांत नीचता और तुच्छता का न केवल परिचय दिया है अपितु शिक्षा जगत में बहुजन समाज के विकास में बाधक और विद्ध्वंषक की भूमिका में खड़े होकर द मोस्ट करप्ट वीसी होने का कलंक भी अर्जित किया है। यह मिसाल ही इस तथ्य का साक्षी है कि
राजीव गांधी विश्वविद्यालय का द मोस्ट करप्ट वीसी साकेत कुशवाहा बहुजन समाज के शैक्षणिक विकास में बाधक या विध्वंसक ही नहीं बल्कि बहुत बड़ा अभिशाप है।
द मोस्ट करप्ट वीसी साकेत कुशवाहा के उक्त मिसाल के सन्दर्भ में प्रोफेसर डॉ0 विश्व नाथ मौर्य ने आह्वान किया कि जब बहुजन समाज का गद्दार और अवसरवादी कहा जाने वाला साकेत कुशवाहा अपने संघी बाप की मदद से संघी - भाजपाईयों का तलवा चाटकर राजीव गांधी विश्वविद्यालय ईटानगर का कुलपति बना था और उसके बाद अपनी बहन निर्मला एस. मौर्य को भाजपा शासित उप्र के पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर में कुलपति बनवाने में कामयाबी हासिल किया था तो बहुजन समाज में विशेषकर मौर्य - कुशवाहा समुदाय के लोग उसकी सजातीयता से प्रभावित होकर आंशिक लाभ पाने की प्रत्याशा में उसको हार्दिक बधाईयाँ और शुभकामनाएं देने में कोई कसर नहीं लगा रहे थे परन्तु आज वे लोग अपना आँख, कान और मुँह बंद करके चुप क्यों हो गए हैं? क्या बहुजन समाज के वे लोग इस समय भ्रष्ट वीसी साकेत कुशवाहा और उसके परिवार के दबाव या प्रभाव में आकर उसके खिलाफ आवाज उठाने से कतराते फिर रहे हैं या वे बहुजन समाज के लोग दोगली राजनीति करके बहुजन समाज के साथ दिखावे, छलावे और बहकावे की छद्म राजनीति कर रहे थे? प्रो. मौर्य ने आक्रोश में आकर कहा कि बहुजन समाज के ऎसे ही दोगले लोगों की जमात से बहुजन समाज का विकास पूर्णतः बाधित है और कुछेक गिनेचुने गद्दार और अवसरवादी लोग शासन-सत्ता में बैठकर मलाई चाट रहे हैं और समाज के कुछ मुर्ख या शातिर दोनों तरह के लोग उनकी चाटुकारिता में दिन-रात लगे हुए हैं। ऎसे विरोधाभाषी परिस्थितियों में बहुजन समाज में एकता और अखंडता न हो पाने के कारण लोग पारी-पारी से भ्रष्टाचारियों के द्वारा उत्पीड़न और अत्याचार के शिकार हो रहे हैं। उन्होने और आगे चेताया कि कुछ लोग सवर्ण को बहुजन समाज के प्रगति में बाधक बताकर झूठे ही आरोप लगाते हैं क्योंकि उनसे कहीं कई गुना ज्यादा टाँग खीचने वाले और बाधा उत्पन्न करने वाले तो बहुजन समाज में ही नाग और कंस मामा बनकर बैठे हुए हैं जो अपनी नीचता और तुच्छता की सभी हदें पार करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।
गौरतलब है कि हमारा भारतीय समाज भिन्न-भिन्न जातियों और धर्मों में बंटा हुआ है। मोटे तौर पर हमारा भारतीय समाज धार्मिक दृष्टिकोण से सवर्ण और बहुजन के दो वर्गों में विभाजित है। जहाँ वर्तमान में सवर्णों की आबादी लगभग 15 फीसदी और शेष 85 फीसदी आबादी बहुजनों की है। बता दें कि भिन्न-भिन्न धर्मशास्त्रों में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर ऎसा माना जाता रहा है कि सदियों से सवर्ण समाज के लोग शैक्षिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से अपेक्षाकृत अधिक सम्पन्न होने के कारण बहुजन समाज के शोषक की भूमिका में रहकर सदैव उत्पीड़न करते आ रहे हैं। हालांकि, यह तथ्य भले ही पूर्णतः सत्य न होकर आंशिक रूप से ही सत्य हो किंतु इतना सच्चाई तो निश्चित तौर पर स्पष्ट परिलक्षित होता है कि सवर्ण और बहुजन दोनों वर्गों में सदैव से ही अपने अस्तित्व और जीविका को लेकर संघर्ष और तनावपूर्ण की स्थिति बनी हुई है। भिन्न-भिन्न अवसरों पर हुई घटनाओं को लेकर आम तौर से ऎसा लोगों का विश्वास रहा है कि मनुवादी और सामंतवादी सोच - विचारधारा के कारण सवर्ण समाज का व्यक्ति बहुजन समाज के व्यक्तियों के समग्र विकास में विशेष रूप से बाधक और विद्ध्वंषक बनकर अभिशाप के रूप में खड़ा हुआ है। हिन्दू धर्मशास्त्रों में पौराणिक कथाओं के अनुसार धनुर्धारी अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ ठहराने के लिए तथाकथित गुरु द्रोणाचार्य ने अपने छल-कपट - इर्ष्या - द्वेष की गलत मंशा और निम्नकोटि के शातिर एवं कुटिल स्वभाव के कारण दलित समाज के महान धनुर्धर एकलव्य के साथ उनका दाहिना अँगूठा दक्षिणा में दान स्वरूप मांगकर या छीनकर घोर अन्याय किया था जिसके फलस्वरूप बहुजन समाज के अधिकांश शिक्षित वर्ग के लोगों ने द्रोणाचार्य को महान धनुर्धर एकलव्य के साथ उसके छल - कपट के जरिए ठगी और धोखा करने के लिए दोषी ठहराते हुए न केवल उस पर गम्भीर आरोप लगाया अपितु द्रोणाचार्य को एक कलंकित गुरु की संज्ञा देते हुए बहुजन समाज के लिए बहुत बड़ा अभिशाप ठहराया। यही कारण है कि आज भी कतिपय शिक्षण संस्थानों में द्रोणाचार्य के नाम से पुरस्कार दिए जाने पर बहुजन समाज के लोगों द्वारा सवाल खड़ा करते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त किया जाता हैr सही मायने में एक प्रोफेसर (शिक्षक - गुरु) और न्यायाधीश की कोई जाति- धर्म नहीं होती है, इन दोनों को ही जाति, धर्म और दल से ऊपर उठकर सभी के साथ समभाव के साथ व्यवहार करना चाहिए और जरूरत पड़ने पर इनको हर सम्भव निष्पक्षता और पारदर्शिता का परिचय देते हुए मिसाल बनकर आम जनता के बीच प्रेरणा का श्रोत बनना चाहिए किन्तु नितांत कलुषित और विषाक्तपूर्ण सामाजिक परिवेश में एक प्रोफेसर या न्यायधीश को भी ऎसा आदर्श हो पाना असम्भव जैसा हो गया है क्योंकि वह अपने पद पर पेशा और सेवा में रहकर अपने अनेकानेक विकारों और विसंगतियों को दूर न कर पाने के कारण जाति, धर्म और दल में बंधकर खुलेआम अपने पद का दुरुपयोग करते हुए घोर पक्षपात करता है।
उल्लेखनीय है कि देश की आजादी के पहले जब तक बहुजन समाज के लोग अति पिछड़े थे, तब तक उनका शोषण मुख्य रूप से सवर्ण समाज के लोग ही करते थे किन्तु आजादी के बाद विशेषकर आरक्षण लागू होने के बाद बहुजन समाज के लोगों में भी शैक्षिक, आर्थिक और राजनैतिक विकास होने से उनके सोच - विचार और व्यवहार में अभूतपूर्व परिवर्तन आया। बहुजन समाज के जो लोग बौद्धिक, आर्थिक और राजनैतिक रूप से कुछ हद तक अग्रणी होने में कामयाब हुए, वे लोग सवर्णों से कहीं कई गुना ज्यादा अपने समाज के कमजोर लोगों के लिए घातक और विद्ध्वंषक के रूप में साबित हुए। आम तौर से बहुजन समाज का कोई भी व्यक्ति जो किसी भी क्षेत्र में सफल हुआ, वह अपने ही समाज के अन्य लोगों को शोषण एवं दमनकारी नीतियों से कुचलने का हर सम्भव प्रयास किया। अतएव, अब स्थिति पहले जैसी नहीं रह गयी कि यदि बहुजन समाज का कोई व्यक्ति शिक्षा क्षेत्र में किसी शिखर तक सफलता प्राप्त करना चाहता है तो उसका विरोध तथाकथित गुरु द्रोणाचार्य की तरह केवल सवर्ण समाज के लोग ही करेंगे अपितु उनसे भी कई गुना ज्यादा विरोध बहुजन समाज के कथित तौर पर सफल व्यक्तियों द्वारा ही किया जायेगा। ऎसे में अब यह आरोप लगाना पूर्णतः गलत होगा कि बहुजन समाज के प्रतिद्वंदी और दुश्मन केवल सवर्ण समाज के लोग ही हैं। ऎसे अनेकों मिसाल उपलब्ध हैं जिससे यह स्पष्ट पुष्टि की जा सकती है कि सवर्णों से कही ज्यादा बाधक, घातक और विदूषक बहुजन समाज के लोग ही हैं जो अपने समाज के अन्य लोगों के प्रगति में बाधक और विद्ध्वंषक के रूप में खड़े होकर अपनी नीचता और तुच्छता की सभी हदें पार कर जाते हैं।
उक्त क्रम में उल्लेखनीय है कि वर्तमान में भी बहुजन समाज के लिए शिक्षा क्षेत्र में सफल होना अन्य क्षेत्रों से कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। यही कारण है कि बड़े ही मुश्किल से कुछेक गिनेचुने लोग ही उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी हो पाए हैं जिनका सामाजिक और नैतिक कर्तव्य बनता है कि वे अपने समाज के अन्य लोगों को और आगे बढ़ाने में गति प्रदान करें परन्तु अत्यंत खेद होता है कि वे ऎसा न करते हुए विपरीत इसके वे कंस मामा बनकर विषैले सर्प और नाग की तरह अपूर्तिनीय क्षति पहुँचाने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं जिससे उनके समाज का कोई दूसरा व्यक्ति उस क्षेत्र में अग्रणी न हो सके। वैसे तो इस सच्चाई को समझने के लिए अनेकानेक मिसाल हैं किन्तु उनमें से अभी हाल ही में घटित एक दृष्टांत का यहां उल्लेख करना प्रासंगिक होगा। प्रश्नगत सन्दर्भ में बता दें कि देश - विदेश के कई विश्वविद्यालयों और तकनीकी शिक्षण संस्थानों में प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष, परीक्षा नियंत्रक, डीन और डायरेक्टर रह चुके और दर्जनों राष्ट्रीय - अन्तराष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित प्रोफेसर डॉ0 विश्व नाथ मौर्य ने अरुणाचल प्रदेश के राजीव गांधी विश्वविद्यालय ईटानगर में गणित एवं सांख्यिकी के लिए रिक्त प्रोफेसर पद के लिए आवेदन किया था जहाँ वर्तमान में उनके ही समाज के उनका करीबी साकेत कुशवाहा कुलपति है। बता दें कि साकेत कुशवाहा ने पहले तो प्रो. मौर्य से प्रोफेसर की नियुक्ति के लिए रिश्वत लेने के लिए टेलीफोन पर वार्ता और सन्देश के जरिए दिल्ली और वाराणसी में कई बार मीटिंग किया किंतु प्रो. मौर्य अपने पर्याप्त शैक्षिक योग्यता, गुणवत्ता, अनुभव और प्रकाशित सैकड़ों शोधपत्रों एवं पुस्तकों को दृष्टिगत रखते हुए रिश्वत देने से इंकार कर दिया जिससे भ्रस्ट वीसी साकेत कुशवाहा ने नाराज होकर आक्रोश में आकर ईर्ष्या, विद्वेष और प्रतिषपर्धा की गलत मंशा से अपने पद का दुरुपयोग करते हुए यूजीसी के मानकों को ताख पर रखकर प्रोफेसर डॉ विश्व नाथ मौर्य को मनमाने ढंग से शून्य एपीआई स्कोर देकर अयोग्य ठहरा दिया। जब प्रो. मौर्य को आरजीयू के वेबसाइट पर उपलब्ध 16 जनवरी 2021 के नोटिफिकेशन के जरिए इसकी जानकारी हुई कि भ्रष्ट वीसी साकेत कुशवाहा को रिश्वत न देने के कारण उन्हें जबरन शून्य एपीआई देकर अयोग्य ठहराया गया है तो उन्होंने अपने आवेदन पत्र के समर्थन में सभी साक्ष्यों के साथ प्रतिवेदन के तहत आपत्ति जताया जिसके उपरांत राजीव गांधी विश्वविद्यालय ईटानगर के रजिस्ट्रार ने अपने 29 जनवरी का सर्कुलर जारी करके उनके व्हाटस्अप के जरिए यह अवगत कराया कि उनके आवेदन पत्र का भलीभाँति जांच किया गया है और अभ्यर्थियों के प्रतिवेदन के आधार पर उनके आवेदन पत्रों की समीक्षा करके पुनः अभ्यर्थियों की फाइनल स्क्रीनिंग लिस्ट जारी किया जायेगा जिससे प्रोफेसर मौर्य स्तब्ध होकर प्रतिक्रिया स्वरूप भिन्न-भिन्न समाचार पत्रों में सम्बंधित विवादित प्रकरण को विस्तार के साथ प्रकाशित करवाया।
आपको बता दें कि राजीव गांधी विश्वविद्यालय ईटानगर के रिश्वतखोर - भ्रष्ट कुलपति साकेत कुशवाहा के कार्यकाल में रिक्त पदों के नियुक्ति की प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर हो रही धांधली, रिश्वतखोरी और भ्रस्टाचार के चलते कुप्रभावित अभ्यर्थियों के बढ़ते गतिरोध के कारण विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रतिवेदन के लिए 23 जनवरी 2021 का समय दिया था। परन्तु हैरत की बात है कि राजीव गांधी यूनिवर्सिटी द्वारा 22-23 दिन बीत जाने के बावजूद भी अभी तक योग्य अभ्यर्थियों की फाइनल स्क्रीनिंग लिस्ट जारी नहीं किया जा सका जो अपने आप में बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है। विश्वविद्यालय के द्वारा जारी 29 जनवरी के सर्कुलर के अनुसार यदि योग्य अभ्यर्थियों की पहले से ही प्रापर स्क्रीनिंग की गयी थी तो क्या समीक्षा में इतना अधिक समय लगना चाहिए? और, यदि विश्वविद्यालय समीक्षा में इतना अधिक समय लगा रहा है तो उसका राज तो स्वतः स्पष्ट हो जाना चाहिए कि दाल में कुछ काला ही नहीं बल्कि पूरी दाल ही काली है। गौरतलब है कि ऎसी अनियमितता होने की संभावना के बारे में आरजीयू का भ्रष्ट वीसी साकेत कुशवाहा अपने मीटिंग में प्रोफेसर डॉ0 विश्व नाथ मौर्य से पहले ही चर्चा किया था कि जिन योग्य अभ्यर्थियों से रिश्वत नहीं मिलता है, उन्हें विश्वविद्यालय के वीसी के साठगाँठ के जरिए विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए स्क्रीनिंग अथवा इंटरव्यू में येनकेन प्रकारेण बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है और आमतौर पर अन्तिम रूप से चयन उसी अभ्यर्थी का किया जाता है जो रिश्वत दिया होता है। भ्रष्ट वीसी साकेत कुशवाहा और उसके छोटे भाई अनुराग कुशवाहा ने अलग-अलग मीटिंग में प्रो. विश्व नाथ मौर्य को यह अवगत कराया कि अभ्यर्थियों द्वारा लिए जाने वाली मोटी रकम की रिश्वत में सम्बंधित लोगों के बीच बंदरबांट भी होता है जिससे नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल सभी सम्बंधित अधिकारी भरपूर सहयोग करते हैं और यदि रिश्वत लिये जाने का कभी कोई पर्दाफाश भी होता है तो शासनसत्ता और कुलपति की मिलीभगत से सभी सम्बंधित अधिकारी लोग अपने-अपने को बचाने के लिए पीड़ित पक्ष की आवाज को दबा देते हैं। अतएव, विश्वविद्यालयों के नियुक्ति प्रक्रिया में चल रही बड़े पैमाने पर रिश्वतखोरी का पर्दाफाश बड़ी मुश्किल से 1 फीसदी ही हो पाता है जिसे सभी सम्बंधित लोग मिलजुल कर दबाने में सफल हो जाते हैं। शिक्षा क्षेत्र में उच्च पदों पर 20 वर्ष तक सेवा कर चुके पर्याप्त अनुभवी प्रोफेसर डॉ0 विश्व नाथ मौर्य को भ्रष्ट वीसी साकेत कुशवाहा की रहस्यमयी बात को समझने में ज्यादा समय नहीं लगा किन्तु भ्रस्ट वीसी से उनकी मुख्यतः चार दलीलें थीं। प्रथम दलील यह थी कि एक अभ्यर्थी के रूप में वह पर्याप्त शिक्षित, योग्य एवं अनुभवी हैं। दूसरी दलील यह थी कि प्रोफेसर नियुक्ति के लिए उनके पास रिश्वत देने के लिए कोई रकम ही नहीं है। तीसरी दलील यह थी कि वह रिश्वतखोरी, धांधली और भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं और चौथी दलील यह कि यदि उन्हें रिश्वत देकर ही प्रोफेसर की नियुक्ति लेनी होती तो वह इसके पहले बीएचयू जैसे किसी अन्य विश्वविद्यालय में ही नियुक्ति ले लिए होते और अब तक करीब 50 वर्ष की उम्र में अन्य भ्रष्टाचारियों की तरह वह भी कई करोड़ रुपये के मालिक होते। फिलहाल, भ्रष्ट वीसी को रिश्वत न देने से उसकी क्रिया - प्रतिक्रिया के जरिए प्रो. मौर्य को कुछ पहले ही अंदेशा हो गया था कि भ्रष्ट वीसी साकेत कुशवाहा रिश्वत न पाने के कारण अपने पद का दुरुपयोग करते हुए उनके साथ गद्दारी करने के लिए अपनी नीचता और तुच्छता की सभी हदें पार कर सकता है और अंततः वही हुआ जिसकी उन्हें पहले से आशंका थी। बता दें कि द मोस्ट करप्ट वीसी साकेत कुशवाहा (The most currupt VC Saket Kushwaha) ने यूजीसी के मानकों को दरकिनार करते हुए प्रो. विश्व नाथ मौर्य (Prof. Vishwa Nath Maurya) को शून्य एपीआई स्कोर देकर अपने मनमाने ढंग से स्क्रीनिंग में ही अयोग्य ठहरा कर अपनी सीमांत नीचता और तुच्छता का न केवल परिचय दिया है अपितु शिक्षा जगत में बहुजन समाज के विकास में बाधक और विद्ध्वंषक की भूमिका में खड़े होकर द मोस्ट करप्ट वीसी होने का कलंक भी अर्जित किया है। यह मिसाल ही इस तथ्य का साक्षी है कि
राजीव गांधी विश्वविद्यालय का द मोस्ट करप्ट वीसी साकेत कुशवाहा बहुजन समाज के शैक्षणिक विकास में बाधक या विध्वंसक ही नहीं बल्कि बहुत बड़ा अभिशाप है।
द मोस्ट करप्ट वीसी साकेत कुशवाहा के उक्त मिसाल के सन्दर्भ में प्रोफेसर डॉ0 विश्व नाथ मौर्य ने आह्वान किया कि जब बहुजन समाज का गद्दार और अवसरवादी कहा जाने वाला साकेत कुशवाहा अपने संघी बाप की मदद से संघी - भाजपाईयों का तलवा चाटकर राजीव गांधी विश्वविद्यालय ईटानगर का कुलपति बना था और उसके बाद अपनी बहन निर्मला एस. मौर्य को भाजपा शासित उप्र के पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर में कुलपति बनवाने में कामयाबी हासिल किया था तो बहुजन समाज में विशेषकर मौर्य - कुशवाहा समुदाय के लोग उसकी सजातीयता से प्रभावित होकर आंशिक लाभ पाने की प्रत्याशा में उसको हार्दिक बधाईयाँ और शुभकामनाएं देने में कोई कसर नहीं लगा रहे थे परन्तु आज वे लोग अपना आँख, कान और मुँह बंद करके चुप क्यों हो गए हैं? क्या बहुजन समाज के वे लोग इस समय भ्रष्ट वीसी साकेत कुशवाहा और उसके परिवार के दबाव या प्रभाव में आकर उसके खिलाफ आवाज उठाने से कतराते फिर रहे हैं या वे बहुजन समाज के लोग दोगली राजनीति करके बहुजन समाज के साथ दिखावे, छलावे और बहकावे की छद्म राजनीति कर रहे थे? प्रो. मौर्य ने आक्रोश में आकर कहा कि बहुजन समाज के ऎसे ही दोगले लोगों की जमात से बहुजन समाज का विकास पूर्णतः बाधित है और कुछेक गिनेचुने गद्दार और अवसरवादी लोग शासन-सत्ता में बैठकर मलाई चाट रहे हैं और समाज के कुछ मुर्ख या शातिर दोनों तरह के लोग उनकी चाटुकारिता में दिन-रात लगे हुए हैं। ऎसे विरोधाभाषी परिस्थितियों में बहुजन समाज में एकता और अखंडता न हो पाने के कारण लोग पारी-पारी से भ्रष्टाचारियों के द्वारा उत्पीड़न और अत्याचार के शिकार हो रहे हैं। उन्होने और आगे चेताया कि कुछ लोग सवर्ण को बहुजन समाज के प्रगति में बाधक बताकर झूठे ही आरोप लगाते हैं क्योंकि उनसे कहीं कई गुना ज्यादा टाँग खीचने वाले और बाधा उत्पन्न करने वाले तो बहुजन समाज में ही नाग और कंस मामा बनकर बैठे हुए हैं जो अपनी नीचता और तुच्छता की सभी हदें पार करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं।
मौर्य ध्वज एक्सप्रेस
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