लखनऊ , गौरतलब है कि हमारे देश में आमतौर से सभी राजनीतिक दल सत्ता में आने के लिए बहुजन समाज के हितों के स्लोगन के साथ सियासत करते हुए ही दिखायी देते हैं किन्तु इसमें कितनी सच्चाई है । यह जानना तब बेहद जरूरी हो जाता है कि जब देश की आजादी के 74 वर्ष बाद तक राजनैतिक दलों के द्वारा बहुजनों के हितों की कवायद किए जाने के बावजूद भी उनकी दयनीय दशा में कोई अभूतपूर्व सुधार नहीं दिखायी दे सका। अत्यंत चिंतनीय है कि वर्तमान में भी बहुसंख्यक समाज की दयनीय स्थिति को देखकर हर कोई व्यक्ति यही महसूस कर रहा है कि उनकी दयनीय स्थिति पूर्ववत ही है। तो फिर ऎसे में प्रश्न उठता है कि आखिरकार उनकी दयनीय दशा में सुधार क्यों नहीं हुआ? इसके लिए मुख्य रूप से कौन लोग जिम्मेदार हैं और इसके पीछे मूल कारण क्या हैं? भारतीय राजनीति के इतिहास को देखते हुए केन्द्र या राज्यों में सत्तारूढ़ रह चुके भिन्न-भिन्न दलों में ऎसे कितने राजनेता हुए हैं जो पिछड़े - दलित - शोषित समाज के हितों के लिए वास्तव में संघर्षरत रहे । केंद्र या राज्यों में सत्ता भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, भाजपा, जेडीयू, राजद, सपा और बसपा में से किसी भी पार्टी की क्यों न रही हो परन्तु उसमें पिछड़े और दलित वर्ग का कमोवेश प्रतिनिधित्व शुरु से ही रहा है। तो अब सवाल उठता है कि उनमें से कितने फीसदी सवर्ण या बहुजन नेता पिछड़े - दलितों के लिए बढ़चढ कर अपनी सक्रिय भूमिका निभाए? इसे जानने के लिए यदि हम पहले सवर्ण नेताओं की बात करें तो गिने-चुने कुछेक राजनेताओं में स्वर्गीय प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का नाम आगे आता है जिनके नेतृत्व में जनता दल की अल्पमत सरकार में बहुजन समाज के सामाजिक सुधार पर ध्यान दिया गया और मंडल आयोग के शिफ़ारिशो को आंशिक रूप से लागू करके पिछड़े वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण दिलाने पर अमल किया गया किंतु इसके लागू होते ही भाजपा में तूफान सा आ गया और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी एवं डॉ. मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में मंडल - कमंडल की राजनीति के बढ़ते प्रभाव से वीपी सिंह की सरकार एक वर्ष पूरा होने के पहले ही 10 नवम्बर 1990 को समर्थन वापस लेने से गिर गयी।
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और, जब पिछड़े - दलित नेताओं के महत्वपूर्ण योगदान पर चर्चा होती है तो उनमें भारत रत्न डॉ0 भीमराव अम्बेडकर जी का नाम सर्वाधिक लोकप्रिय होने के कारण उल्लेखनीय है जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्वर्गीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के शासनकाल में आजाद भारत के प्रथम कानून मंत्री रहे जिन्होने भारतीय संविधान का निर्माण करके पिछड़े - दलितों - शोषितों को उनके हक और अधिकारों के प्रावधान को लागू करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया और अपना पूरा जीवन ही बहुजन समाज के सामाजिक दशा को सुधारने में ही समर्पित कर दिया। यहाँ तक कि पिछड़े वर्ग के हितों को लेकर उन्होंने अपने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा भी दे दिया था। यही कारण है कि पिछड़े - दलितों के हित में डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा किया गया अद्वितीय योगदान सदा-सर्वदा के लिए अविस्मरणीय ही रहेगा। उनके बाद पिछड़े - दलितों के मसीहा की भूमिका में मुख्य रूप से स्वर्गीय प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का नाम उल्लेख होता है । जिनके नेतृत्व में जनता दल के अल्पकालिक शासनकाल (28 जुलाई 1979 -14 जनवरी 1980) में पिछड़े - दलितों के कल्याणकारी योजनाओं पर पहल करते हुए अमल किया गया। विशेषकर राज्य के कल्याणकारी सिद्धांतों पर आधारित होने के कारण उनके द्वारा 1952 में तैयार किया गया जमीदारी उन्मूलन विधेयक ग़रीबों के लिए वरदान साबित हुआ। उन्हीं के प्रयासों से जमीदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ जो पिछड़े - दलित - शोषित समाज के शोषण से मुक्ति का मार्ग कहा जा सकता है। किसान नेता के रूप में जाने वाले स्वर्गीय प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने 1954 में किसानों की दशा में सुधार के लिए उत्तर प्रदेश में भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया। हालांकि उनके कार्यकाल के बाद भी कांग्रेस के समर्थन से जनता दल केन्द्र में दो बार सत्तारूढ़ हुई और चन्द्रशेखर सिंह एवं एच.डी. देवेगौड़ा भी अल्पकाल के लिए प्रधानमन्त्री हुए किंतु सामंती कांग्रेस के हस्तक्षेप से पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा पिछड़े वर्ग के होने के बावजूद भी बहुसंख्यक समाज के लिए कोई ज्यादा कल्याणकारी कार्य न कर सके। कालांतर में बहुजनों को सामाजिक और राजनैतिक रूप से जागरूक करने एवं संगठित करने की दिशा में मान्यवर कांशीराम की महत्वपूर्ण भूमिका रही जिन्होंने महात्मा ज्योतिबाराव फूले और डॉ. भीमराव अंबेडकर के नव भारत के निर्माण के सपने को साकार करने के लिए 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी की स्थापना करके शोषित क्रान्ति का विगुल बजाया और बहुसंख्यक समाज के लिए नयी दिशा एवं नया आयाम देने का जीवन पर्यन्त संघर्ष भी किया जिनके नेतृत्व में ही आगे चलकर बहन मायावती उप्र की सत्ता पाने में कामयाब हुईं और चार बार मुख्यमंत्री बनीं। बसपा की स्थापना के उपरांत पिछड़े - दलितों के हित में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी की भी स्थापना हुई और वह भी उप्र के तीन बार मुख्यमंत्री रहे और उनके बेटे अखिलेश यादव भी 2012 - 2017 के दौरान पूर्णकालिक मुख्यमंत्री रहे। और, कुछ ऎसा ही तथ्य बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के सम्बंध में उल्लेख किया जा सकता है जो चारा घोटाले में दोषी करार किए जाने के बाद 2013 से ही विवादों से घिरे हैं। किंतु इस क्रम में उल्लेखनीय है कि न ही स्वर्गीय प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के उत्तराधिकारी उनके पुत्र चौधरी अजीत सिंह और न ही मान्यवर कांशीराम के उत्तराधिकारी बहन मायावती अथवा किसी अन्य बहुजन नेताओं में पिछड़े - दलितों को एकजुट करने की ललक अथवा परवाह रह गयी है। हालांकि इस तथ्य से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि तथाकथित कुछेक क्रांतिकारी बहुजन नेताओं के उत्तराधिकारियों को विरासत में प्राप्त राजनैतिक पृष्ठभूमि का लाभ कुछ सीमा तक अवश्य मिला और वे सत्तासुख भोग करने में कामयाब रहे परन्तु बहुसंख्यक समाज का बहुत बड़ा हिस्सा अपने हक व अधिकार से वंचित ही रहा जिससे आज उनमें
और, जब पिछड़े - दलित नेताओं के महत्वपूर्ण योगदान पर चर्चा होती है तो उनमें भारत रत्न डॉ0 भीमराव अम्बेडकर जी का नाम सर्वाधिक लोकप्रिय होने के कारण उल्लेखनीय है जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्वर्गीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के शासनकाल में आजाद भारत के प्रथम कानून मंत्री रहे जिन्होने भारतीय संविधान का निर्माण करके पिछड़े - दलितों - शोषितों को उनके हक और अधिकारों के प्रावधान को लागू करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया और अपना पूरा जीवन ही बहुजन समाज के सामाजिक दशा को सुधारने में ही समर्पित कर दिया। यहाँ तक कि पिछड़े वर्ग के हितों को लेकर उन्होंने अपने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा भी दे दिया था। यही कारण है कि पिछड़े - दलितों के हित में डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा किया गया अद्वितीय योगदान सदा-सर्वदा के लिए अविस्मरणीय ही रहेगा। उनके बाद पिछड़े - दलितों के मसीहा की भूमिका में मुख्य रूप से स्वर्गीय प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का नाम उल्लेख होता है । जिनके नेतृत्व में जनता दल के अल्पकालिक शासनकाल (28 जुलाई 1979 -14 जनवरी 1980) में पिछड़े - दलितों के कल्याणकारी योजनाओं पर पहल करते हुए अमल किया गया। विशेषकर राज्य के कल्याणकारी सिद्धांतों पर आधारित होने के कारण उनके द्वारा 1952 में तैयार किया गया जमीदारी उन्मूलन विधेयक ग़रीबों के लिए वरदान साबित हुआ। उन्हीं के प्रयासों से जमीदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ जो पिछड़े - दलित - शोषित समाज के शोषण से मुक्ति का मार्ग कहा जा सकता है। किसान नेता के रूप में जाने वाले स्वर्गीय प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने 1954 में किसानों की दशा में सुधार के लिए उत्तर प्रदेश में भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया। हालांकि उनके कार्यकाल के बाद भी कांग्रेस के समर्थन से जनता दल केन्द्र में दो बार सत्तारूढ़ हुई और चन्द्रशेखर सिंह एवं एच.डी. देवेगौड़ा भी अल्पकाल के लिए प्रधानमन्त्री हुए किंतु सामंती कांग्रेस के हस्तक्षेप से पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा पिछड़े वर्ग के होने के बावजूद भी बहुसंख्यक समाज के लिए कोई ज्यादा कल्याणकारी कार्य न कर सके। कालांतर में बहुजनों को सामाजिक और राजनैतिक रूप से जागरूक करने एवं संगठित करने की दिशा में मान्यवर कांशीराम की महत्वपूर्ण भूमिका रही जिन्होंने महात्मा ज्योतिबाराव फूले और डॉ. भीमराव अंबेडकर के नव भारत के निर्माण के सपने को साकार करने के लिए 14 अप्रैल 1984 को बहुजन समाज पार्टी की स्थापना करके शोषित क्रान्ति का विगुल बजाया और बहुसंख्यक समाज के लिए नयी दिशा एवं नया आयाम देने का जीवन पर्यन्त संघर्ष भी किया जिनके नेतृत्व में ही आगे चलकर बहन मायावती उप्र की सत्ता पाने में कामयाब हुईं और चार बार मुख्यमंत्री बनीं। बसपा की स्थापना के उपरांत पिछड़े - दलितों के हित में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी की भी स्थापना हुई और वह भी उप्र के तीन बार मुख्यमंत्री रहे और उनके बेटे अखिलेश यादव भी 2012 - 2017 के दौरान पूर्णकालिक मुख्यमंत्री रहे। और, कुछ ऎसा ही तथ्य बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से लम्बे समय तक मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी के सम्बंध में उल्लेख किया जा सकता है जो चारा घोटाले में दोषी करार किए जाने के बाद 2013 से ही विवादों से घिरे हैं। किंतु इस क्रम में उल्लेखनीय है कि न ही स्वर्गीय प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के उत्तराधिकारी उनके पुत्र चौधरी अजीत सिंह और न ही मान्यवर कांशीराम के उत्तराधिकारी बहन मायावती अथवा किसी अन्य बहुजन नेताओं में पिछड़े - दलितों को एकजुट करने की ललक अथवा परवाह रह गयी है। हालांकि इस तथ्य से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि तथाकथित कुछेक क्रांतिकारी बहुजन नेताओं के उत्तराधिकारियों को विरासत में प्राप्त राजनैतिक पृष्ठभूमि का लाभ कुछ सीमा तक अवश्य मिला और वे सत्तासुख भोग करने में कामयाब रहे परन्तु बहुसंख्यक समाज का बहुत बड़ा हिस्सा अपने हक व अधिकार से वंचित ही रहा जिससे आज उनमें
बेहद आक्रोश है और इसीलिए उनके द्वारा भिन्न-भिन्न नये राजनीतिक दलों का गठन भी हो रहा है।
राष्ट्रीय विकासवादी समता पार्टी (राविसपा) के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ0 विश्व नाथ मौर्य ने बहुजन नेताओं को सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्र में उनके सोच - विचार, व्यवहार और भूमिका को लेकर चार श्रेणियों में विभाजित करते हुए कहा कि प्रथम तीन श्रेणियों में आने वाले अधिकाँश बहुजन नेता भ्रष्ट हैं जिनके कारण ही पिछड़े - दलित समाज का विकास पूर्णतः अवरुद्ध रहा है और चौथे श्रेणी में आने वाले अच्छी छवि के कुछेक बहुजन नेता लोकतन्त्र एवं राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण के कारण भ्रष्ट नेताओं के दुष्प्रभाव से सत्ता में आने से बहुत दूर हैं किन्तु सही मायने में अच्छी छवि वाले कुछेक इन्हीं बहुजन नेताओं की भूमिका बहुसंख्यक समाज के हित में उल्लेखनीय है। आमतौर से प्रथम श्रेणी के बहुजन नेतागण सामंती कांग्रेस - भाजपा में शामिल होकर अपने स्वार्थहितों के उद्देश्य को पूरा करने में ही लिप्त रहे हैं और उन्हें अपने पिछड़े - दलित समाज के कल्याण की कोई चिंता ही नहीं रही है। ऎसे बहुजन नेता अपने समाज के प्रतिनिधित्व का लाभ उठाने और कांग्रेस - भाजपा जैसी राष्ट्रीय स्तर की सशक्त पार्टियों में अधीनस्थता के रूप में हाँ में हाँ मिलाने में मशगूल रहे हैं। दूसरे श्रेणी के बहुजन नेता कुछेक क्षेत्रीय और प्रांतीय दलों में रहकर राज्य की सत्ता में छोटे - बड़े घोटाले, लूटपाट और भ्रष्टाचार करके अपार सम्पत्ति अर्जित करने में संलिप्त रहे हैं जिसमें मुख्यतः सपा, बसपा और राजद का नाम अग्रणी रहा है जिस पर अभी तक बहुजन समाज के लोग उसके छलावे और दिखावे से प्रभावित होकर अपना विश्वास जताते रहे परन्तु इन पार्टियों के तथाकथित विसंगतियों का पर्दाफाश होने पर जनता के द्वारा उन्हें वर्तमान में राज्य की सत्ता से भी बेदखल कर दिया गया है। इन तीनों पार्टियों को अपने आन्तरिक जातिवाद, परिवारवाद, वंशवाद, व्यक्तिवाद और अवसरवाद जैसे अनेकानेक विसंगतियों के विद्यमान होने के कारण राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता नहीं मिल सकी और विशेषकर उत्तर प्रदेश एवं बिहार प्रांत में ही सिमट कर रह गयीं। जबकि बहुजन समाज को इन दलों से बहुत आश थी कि ये पार्टियाँ उनका कल्याण अवश्य करेंगी किंतु इन पार्टियों के शीर्ष नेताओं के अपने तमाम विसंगतियों के चलते विवादों के घेरे में आने के कारण उनके आशाओं पर पानी फिर गया। क्या यह दुर्भाग्यपूर्ण नहीं है कि पूर्व में कई बार सत्तारूढ़ रह चुकी इन तीनो पार्टियों का वर्तमान में ऎसा हस्र हो गया है कि ये पार्टियाँ भाजपा और कांग्रेस के अधीनस्थ रहकर ही अपना अस्तित्व बचाने के लिए मजबूर हो गयी हैं और केंद्र की सत्ता तो बहुत दूर की बात है यहां तक कि अब राज्य की सत्ता भी उनसे कोसों दूर हो गयी है?
राविसपा के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ0 विश्व नाथ मौर्य ने बहुसंख्यक समाज के हितों की परवाह करते हुए उनको आगाह करने के लिए चेताया कि कथित तौर पर पिछड़े - दलितों के हितों की हुंकार भरने वाली सपा, बसपा और राजद समेत अन्य पार्टियों में जनसेवा की भावना नहीं रह गयी है बल्कि इनका येनकेन प्रकारेण फेरवदल और जोड़तोड़ की राजनीति से सत्तासुख भोगने, घोटाला और भ्रष्टाचार करके अपार सम्पत्ति अर्जित करने का एकमात्र उद्देश्य बन गया है। इन पार्टियों में निम्न स्तर से लेकर शीर्ष स्तर तक के नेताओं का लूटपाट और घोटाला करके अपार सम्पत्ति अर्जित करने का ही एकमात्र लक्ष्य दृष्टिगोचर होता है जो समाज और देशहित में नहीं है। उन्होने कहा कि वर्तमान में मुख्यतः ये तीनो ही पार्टियाँ सत्तारूढ़ मनुवादी भाजपा सरकार के बहुजन विरोधी नीतियों और निर्णयों का खुलकर विरोध करने में असमर्थ दिखायी दे रही हैं। इन पार्टियों के शीर्ष नेतागण भाजपा सरकार के द्वारा पिछड़े-दलित वर्ग के आरक्षण पर हमला, सरकारी उपक्रमों के निजीकरण, लोकतन्त्र एवं राजनीती के अपराधीकरण, सीएए और एनआरसी जैसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों के विरोध में सक्रिय होकर आवाज नहीं उठाते हैं बल्कि विपरीत इसके संघ - भाजपा के मनुवादी विचारधारा को अपनाने में मशगूल दिखायी दे रहे हैं जो पिछड़े - दलितों - शोषितों के लिए बेहद चिंतनीय है। प्रो. मौर्य ने कहा कि जब तक ये पार्टियाँ अपने स्वार्थपरता, अवसरवादिता, वैचारिक संकीर्णता एवं जाति-परिवार - वंश वादिता जैसे तमाम विकारों को दूर नहीं करेंगी तब तक इन्हें पुनः सत्ता में आने का अवसर नहीं प्राप्त होगा और वर्तमान में सत्तारुढ़ मनुवादी संघ - भाजपा सरकार एवं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का कठपुतली बनकर ही रहना पड़ेगा। उन्होने अफ़सोस जताते हुए कहा कि अब इनमें डॉ. भीमराव अंबेडकर के मानवतावाद और डॉ. राम मनोहर लोहिया के समाजवाद की विचारधारा विलुप्त सी हो गयी है और ये पार्टियाँ सत्ता हथियाने के होड़ में सामंती भाजपा और कांग्रेस के बहुजन विरोधी नीतियों के संगत विचारधाराओं और सिद्धांतों को ही अपनाने की दिशा में उन्मुख हो रही हैं। तीसरे श्रेणी के बहुजन नेताओं का भी जिक्र करते हुए राविसपा के अध्यक्ष प्रो. मौर्य ने कहा कि घोटाले और भ्रष्टाचार मामले में संलिप्तता को लेकर सपा - बसपा से विवशता में निस्कासित किए गए कुछेक बहुजन नेताओं के द्वारा नए राजनीतिक दलों के जरिए बहुजन समाज की राजनीति करके उन्हें दिग्भ्रमित किए जाने का जोर-शोर से प्रयास चल रहा है किन्तु पिछड़े - दलितों - शोषितों के हक अधिकार को दिलाने और उन पर हो रहे अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए भारत गौरव, राष्ट्रीय शिक्षा रत्न और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम एक्सीलेंस अवार्ड से सम्मानित प्रोफेसर डॉ0 विश्व नाथ मौर्य के नेतृत्व में संस्थापित राष्ट्रीय विकासवादी समता पार्टी बहुसंख्यक समाज को जागरूक और एकजुट करने की दिशा में निरंतर प्रयत्नशील है। प्रो. मौर्य ने कहा कि राविसपा समय - समय पर बहुसंख्यक समाज को अपने संबोधन, बयानों और राजनीतिक गतिविधियों के माध्यम से आगाह करने के लिए तत्परता दिखाती रहती है कि बहुसंख्यक समाज के लोग अब अपने मूलभूत अधिकारों के प्रति सतर्क और सचेत हो जाएँ तथा वे सपा - बसपा या अन्य किसी राजनीतिक दल के झूठे प्रलोभन देने से बहकावे में कदापि न आएँ अन्यथा उनके साथ पूर्व की भाँति पुनः धोखाधड़ी और विश्वासघात होने के बाद उन्हें प्रायश्चित ही करना होगा।
राविसपा अध्यक्ष प्रो. मौर्य ने छद्म राजनीति करने वाली पार्टियों से बहुसंख्यक समाज को दिग्भ्रमित होने से दूर रहने के लिए आगाह किया और कहा कि हाथी की तरह इन पार्टियों के खाने और दिखाने के लिए अलग अलग दाँत होते हैं। इनके छलावे और दिखावे से बहुजन समाज को सावधान और सतर्क रहने की शक्त जरूरत है। अतएव इनके कथनी और करनी में अंतर को हमेशा दृष्टिगत रखते हुए इनसे दूरी बनाकर ही रहना बहुसंख्यक समाज के लिए हितकर होगा। उन्होने बहुसंख्यक समाज को आगाह करते हुए यह भी कहा कि तथाकथित पार्टियों की एक बड़ी विडम्बना है कि ये पार्टियाँ अपनी असफलता से सम्बंधित किसी सच्चाई को न तो कभी सहर्ष स्वीकार करना चाहती हैं और न ही अपने किसी विचारधारा पर धैर्यपूर्वक अडिग रह सकती हैं क्योंकि इनकी नीतियों और विचारधाराओं में भिन्न-भिन्न विसंगतियों के साथ अस्पष्टता एवं भ्रामकता भी दृष्टिगोचर होती है। ये सदैव फेरबदल और जोड़तोड़ करके तात्कालिक और व्यक्तिगत लाभ के ही फिराक में अपना पूरा ध्यान केन्द्रित रखती हैं और इसीलिए ये पार्टियाँ राष्ट्रीय स्तर पर न पहुँचने के कारण बड़े राजनैतिक लाभ से वंचित हो जाती हैं।
प्रो. मौर्य ने बहुजन समाज के भिन्न-भिन्न राजनीतिक दलों के एकीकरण के सन्दर्भ में भी बहुसंख्यक वर्ग के लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए ज़ोर देते हुए कहा कि यह चिंताजनक स्थिति भ्रष्ट बहुजन नेताओं के निम्न कोटि की मानसिकता, वैचारिक संकीर्णता, निजी स्वार्थपरता और अदूरदर्शिता के कारण ही उत्पन्न हुई है। और, राजनीतिक दलों का एकीकरण तभी सम्भव है जब इन भ्रष्ट और बहुरूपिया बहुजन नेताओं का खुला बहिष्कार करके उनको अस्तित्वविहीन किया जाए क्योंकि जब तक ये प्रभुत्व में रहेंगे तब तक अपने निजी स्वार्थपरक उद्देष्यों के लिए बहुसंख्यक समाज को छद्म सियासत के जरिए झूठा प्रलोभन देकर दिग्भ्रमित करते ही रहेंगे और भिन्न-भिन्न राजनीतिक दलों के एकीकरण में बाधक की भूमिका में खड़े होते रहेंगे। गौरतलब है कि सवर्ण समाज के दलों में मुख्यतः कांग्रेस और भाजपा दोनों में सीएम, पीएम और राष्ट्रपति बनने वाले व्यक्तियों को जरूरी नहीं है कि वे लोग गाँधी या संघ परिवार से खून का ही रिश्ता रखते हों बल्कि उनके संगठन से जुड़कर संगत विचारधारा के ओत - प्रोत में उनकी सक्रिय भूमिका होनी चाहिए जबकि सपा, बसपा और राजद में सीएम, पीएम और राष्ट्रपति का पद केवल निजी परिवार के लिए ही हमेशा के लिए सुरक्षित है। इन पार्टियों में दूसरा कोई व्यक्ति कितना भी सुयोग्य क्यों न हो किंतु उसकी उपेक्षा किया जाना निश्चित है। ध्यातव्य हो कि कांग्रेस और भाजपा में शीर्ष पदस्थ लोगों ने केवल अपना स्वार्थ नहीं सिद्ध किया अपितु अपने सवर्ण समाज के हितों का पूरा ध्यान रखा और उन्हें भरपूर लाभान्वित भी किया जिससे उनका समाज संगठित रहा है। यदि कांग्रेस - भाजपा के शीर्ष नेताओं ने भ्रस्टाचार भी किया तो कहीं न कहीं उसका आंशिक फायदा उनके सवर्ण समाज को भी मिला जिसके फलस्वरूप सवर्ण समाज का विकास तीब्रगति से निरंतर बढ़ता ही रहा है। किंतु बहुत दुखद है कि हमारे बहुजन समाज का कोई राजनेता या उच्च पदस्थ अधिकारी इतना अधिक भ्रष्ट, संकीर्ण और निम्नकोटि विचारधारा का है कि वह केवल अपने निजी परिवार और रिश्तेदार के लिए ही भ्रष्टाचार के फिराक में अपने समाज को सजातीयता के नाम पर ठगने और एकजुट करने की कवायद करता है। उसके निम्नकोटि की मानसिकता और बौद्धिक संकीर्णता के कारण उसके द्वारा किया गया कृत्य, दुर्व्यवहार, भ्रष्टाचार इत्यादि से क्या वर्तमान तकनीकी युग में समाज के लोग अनभिज्ञ हैं? क्या बहुसंख्यक समाज के अन्य लोग मुर्ख हैं कि वे ऎसे भ्रष्टाचारी नेताओं के बहकावे और झूठे प्रलोभन में आकर बार-बार अपनी मूर्खता को दोहराते ही रहें? बहुजन समाज के अधिकांश अपढ़- गँवार, अपराधी और अवसरवादी लोग जातीय समीकरण का फायदा उठाकर विधायक, सांसद और मंत्री बने घूम रहे हैं जो अपने समानांतर किसी अन्य सुयोग्य व्यक्ति को कदापि नहीं देखना चाहते हैं और वे दूसरों के शिक्षा, योग्यता और गुणवत्ता की भरपूर उपेक्षा करते हैं जबकि वहीं अपने घर- परिवार के बच्चों को अवश्य शिक्षित करना चाहते हैं, उनका ऎसा दोहरा चरित्र क्यों और किसलिए? क्या उनका यह दोहरा चरित्र समाज के लिए विघटनकारी और घातक नहीं है? पिछड़े और दलित वर्ग के अवरुद्ध विकास के लिए मनुवादी सवर्ण नेताओं से कहीं ज्यादा जिम्मेदार भ्रष्ट बहुजन नेता हैं जिनकी भूमिका पर कई ऎसे गम्भीर सवाल खड़े होते हैं।
राविसपा अध्यक्ष प्रो. मौर्य ने कहा कि अपराध और भ्रष्टाचार में संलिप्त अहंकारी और समर्थवान व्यक्ति के द्वारा बहुजन समाज के विकास की कल्पना साकार होना दिवास्वप्न ही है। इन भ्रष्ट बहुजन नेताओं के नेतृत्व में अब न ही बहुसंख्यक समाज संगठित होने वाला है और न ही बहुसंख्यक समाज की दयनीय स्थिति में कोई अभूतपूर्व सुधार होने वाला है। जो व्यक्ति या नेता गाँव, ब्लाक और जिला स्तर पर अस्तित्व में रहकर कोई सुधार नहीं कर सका उससे राज्य और देश स्तर पर सुधार की आशा करना महामूर्खता ही है। बुद्धिजीवियों के साथ तालमेल और समन्वय स्थापित करके दूरदर्शिता, समदर्शिता, त्याग, समर्पण और नयी दिशा-दृष्टि अपनाने से ही सामाजिक सुधार सम्भव है। समाज और देश के वास्तविक कल्याण के लिए नकारात्मक विचारों से ऊपर उठकर नयी दिशा - दृष्टि और सकारात्मक सोच - विचार के साथ आगे बढ़ना होगा अन्यथा जनमानस की समस्याएँ घटने के वजाय नित्य - निरंतर बढ़ेंगी जिससे समाज में ईर्ष्या, द्वेष, अशांति और विषाक्तपूर्ण वातावरण ही उत्पन्न होगा जैसा कि भिन्न-भिन्न दलों द्वारा छद्म, विकृत और घृणित राजनीति किए जाने के कारण ही वर्तमान में अत्यंत कलुषित वातावरण उत्पन्न हो गया है। और, ऎसे कलुषित वातावरण में देश के समेकित विकास करने की बात बहुत दूर की होगी, यहाँ तक कि किसी को सामाजिक न्याय मिलना ही कल्पना तुल्य हो जायेगा। इस दिशा में राष्ट्रीय विकासवादी समता पार्टी की विचारधारा, नीतियां और सिद्धांत अन्य दलों से भिन्न हैं। राविसपा जातिवाद, परिवारवाद, वंशवाद, धर्मवाद, सम्प्रदायवाद हिंसावाद को कदापि बढ़ावा नहीं देती है। इसमें व्यक्ति के शिक्षा, योग्यता, गुणवत्तापूर्ण विचार, ईमानदारी, व्यवहार एवं कार्य कुशलता जैसे सद्गुणों को ही महत्व दिया जाता है। राविसपा मुख्यतः धर्म निरपेक्षता, समता, समानता, मानवता, बंधुता और विज्ञानवादिता पर ही आधारित है जो सर्वसमाज के न केवल विकास के लिए अपितु शान्ति और सौहार्द्र के लिए भी अवश्यक पहलू हैं।
संवाददाता :- सतेंद्र कुमार
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