लखनऊ (उ•प्र•) सपा-बसपा-भाजपा से त्रस्त बहुजन नेतागण राविसपा में हुए शामिल : प्रो. विश्व नाथ मौर्य ।।
गौरतलब है कि हमारे देश में जहाँ बढ़ते राजनीतिक अपराधीकरण से न्यायतंत्र से लेकर लोकतन्त्र की संरक्षा के लिए स्थापित सभी स्वायत्त संस्थाएं दबाव में आकर बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं वहीं क्षेत्रीय स्तर से लेकर प्रान्तीय और राष्ट्रीय स्तर के भिन्न-भिन्न राजनैतिक दलों में छद्म, घृणित और विकृत राजनीति का वर्चस्व तीब्रगति से बढ़ने के कारण लोकतन्त्र पूरी तरह से चपेट में आ चुका है।
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क्या यह दुर्भाग्यपूर्ण नहीं है कि भारत जैसे धर्म- निरपेक्ष लोकतांत्रिक देश में सत्ता प्राप्ति के लिए राजनीतिक दलों के द्वारा धार्मिक मुद्दे को हथियार बनाकर हिन्दुत्व, मनुवाद, पाखंडवाद और अंधविश्वास फैलाने की राजनीति अपने चर्म पर पहुँच गयी है? भारतीय राजनीति में धर्मतन्त्र के बढ़ते प्रभाव को दृष्टिगत रखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भारतीय लोकतन्त्र पर धर्मतन्त्र का कब्जा स्थापित हो गया है। राज्य या केन्द्र में सत्तारूढ़ रह चुकी सपा - बसपा - भाजपा और कांग्रेस सभी पार्टियाँ धर्मतन्त्र और छद्म राजनीति के ही सहारे सत्ता हथियाने में कामयाब रही हैं। पिछड़े - दलितों - शोषितों के मसीहा माने जाने वाले स्वर्गीय प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में संघ - भाजपा के मंडल - कमंडल की राजनीति से ही भारतीय राजनीति में धर्मतंत्र का वर्चस्व बढ़ गया था। और उन दिनों में ही अयोध्या स्थित राम मन्दिर-बाबरी मस्जिद के धार्मिक विवाद का मुद्दा तूल पकड़ लिया था। मंडल - कमंडल की राजनीति के सहारे ही भाजपा वीपी सिंह की सरकार को न केवल गिराने में कामयाब रही अपितु वह धर्मतंत्र को अपने बैसाखी के रूप में इस्तेमाल करके कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय स्तर की सबसे बड़ी सत्तारूढ़ पार्टी को धराशायी कर केंद्र और 10 से अधिक राज्यों की सत्ता हथियाने में भी कामयाब रही है। भाजपा द्वारा धर्मतन्त्र के निरंतर प्रयोग से भारतीय राजनीति में उसके उपलब्धियों को देखकर क्षेत्रीय स्तर से लेकर प्रान्तीय और राष्ट्रीय स्तर की सभी पार्टियों में धर्मतन्त्र को ही मुख्य हथियार के रूप में अपनाये जाने का सिलसिला अब जोरों पर है।
क्या यह दुर्भाग्यपूर्ण नहीं है कि भारत जैसे धर्म- निरपेक्ष लोकतांत्रिक देश में सत्ता प्राप्ति के लिए राजनीतिक दलों के द्वारा धार्मिक मुद्दे को हथियार बनाकर हिन्दुत्व, मनुवाद, पाखंडवाद और अंधविश्वास फैलाने की राजनीति अपने चर्म पर पहुँच गयी है? भारतीय राजनीति में धर्मतन्त्र के बढ़ते प्रभाव को दृष्टिगत रखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भारतीय लोकतन्त्र पर धर्मतन्त्र का कब्जा स्थापित हो गया है। राज्य या केन्द्र में सत्तारूढ़ रह चुकी सपा - बसपा - भाजपा और कांग्रेस सभी पार्टियाँ धर्मतन्त्र और छद्म राजनीति के ही सहारे सत्ता हथियाने में कामयाब रही हैं। पिछड़े - दलितों - शोषितों के मसीहा माने जाने वाले स्वर्गीय प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में संघ - भाजपा के मंडल - कमंडल की राजनीति से ही भारतीय राजनीति में धर्मतंत्र का वर्चस्व बढ़ गया था। और उन दिनों में ही अयोध्या स्थित राम मन्दिर-बाबरी मस्जिद के धार्मिक विवाद का मुद्दा तूल पकड़ लिया था। मंडल - कमंडल की राजनीति के सहारे ही भाजपा वीपी सिंह की सरकार को न केवल गिराने में कामयाब रही अपितु वह धर्मतंत्र को अपने बैसाखी के रूप में इस्तेमाल करके कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय स्तर की सबसे बड़ी सत्तारूढ़ पार्टी को धराशायी कर केंद्र और 10 से अधिक राज्यों की सत्ता हथियाने में भी कामयाब रही है। भाजपा द्वारा धर्मतन्त्र के निरंतर प्रयोग से भारतीय राजनीति में उसके उपलब्धियों को देखकर क्षेत्रीय स्तर से लेकर प्रान्तीय और राष्ट्रीय स्तर की सभी पार्टियों में धर्मतन्त्र को ही मुख्य हथियार के रूप में अपनाये जाने का सिलसिला अब जोरों पर है।
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सत्ता पाने के होड़ में आम तौर से सभी पार्टियों का रुझान धर्मतन्त्र के प्रति तेजी से बढ़ा है। यहाँ तक कि मूलतः समाजवादी और अंबेडकरवादी विचारधारा वाली क्रमशः सपा और बसपा पार्टियाँ भी सत्तालोभ में पथभ्रष्ट होकर अथवा भाजपा के चंगुल में फंसकर मनुवादग्रस्त हो गयी हैं। वर्तमान में आलम यह है कि उत्तर प्रदेश की सत्ता में कई बार रह चुकी सपा और बसपा दोनों ही पार्टियाँ पुनः सत्ता पाने के होड़ में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार से भी कहीं ज्यादा हिन्दुत्व, मनुवाद, पाखंडवाद और अंधविश्वास को बढ़ाने के लिए ज़ोर-शोर से प्रयासरत हैं और भारतीय समाज में सामंतवादी व्यवस्था को पुनः वापस लाने की ओर आगे बढ़ रही हैं। भाजपा शासित उप्र में मनुस्मृति पर आधारित कोर्ट भी मेरठ में स्थापित किया जा चुका है जो अपनी विसंगतियों को लेकर विवादों के घेरे में है। मनुस्मृति और भारतीय संविधान में कहीं कोई तालमेल न होने के कारण हमेशा ही विरोधाभाष की स्थिति उत्पन्न होती रही है। भाजपा सरकार द्वारा स्वतंत्र भारत में मनुस्मृति की पुनर्स्थापना की दिशा में निरंतर चल रहा प्रयास वस्तुतः बहुसंख्यक समाज के भविष्य के लिए बेहद कष्टकारी साबित होगा। वर्तमान वैज्ञानिक युग में सभी क्षेत्रों में आधुनिकीकरण को दृष्टिगत रखते हुए मनुस्मृति की प्रासंगिकता पर बहुत बड़ा सवाल उठता है जिसके समाधान के लिए बहुसंख्यक समाज के बुद्धजीवियों और समाजसेवियों को एकजुट होकर आगे आना चाहिए। यदि समय रहते इससे प्रभावित होने वाले बहुसंख्यक समाज के जागरूक लोगों ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर गहन चिंतन-मनन नहीं किया तो भविष्य में उनकी आने वाली पीढ़ियों को दुर्दांत जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
सत्ता पाने के होड़ में आम तौर से सभी पार्टियों का रुझान धर्मतन्त्र के प्रति तेजी से बढ़ा है। यहाँ तक कि मूलतः समाजवादी और अंबेडकरवादी विचारधारा वाली क्रमशः सपा और बसपा पार्टियाँ भी सत्तालोभ में पथभ्रष्ट होकर अथवा भाजपा के चंगुल में फंसकर मनुवादग्रस्त हो गयी हैं। वर्तमान में आलम यह है कि उत्तर प्रदेश की सत्ता में कई बार रह चुकी सपा और बसपा दोनों ही पार्टियाँ पुनः सत्ता पाने के होड़ में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार से भी कहीं ज्यादा हिन्दुत्व, मनुवाद, पाखंडवाद और अंधविश्वास को बढ़ाने के लिए ज़ोर-शोर से प्रयासरत हैं और भारतीय समाज में सामंतवादी व्यवस्था को पुनः वापस लाने की ओर आगे बढ़ रही हैं। भाजपा शासित उप्र में मनुस्मृति पर आधारित कोर्ट भी मेरठ में स्थापित किया जा चुका है जो अपनी विसंगतियों को लेकर विवादों के घेरे में है। मनुस्मृति और भारतीय संविधान में कहीं कोई तालमेल न होने के कारण हमेशा ही विरोधाभाष की स्थिति उत्पन्न होती रही है। भाजपा सरकार द्वारा स्वतंत्र भारत में मनुस्मृति की पुनर्स्थापना की दिशा में निरंतर चल रहा प्रयास वस्तुतः बहुसंख्यक समाज के भविष्य के लिए बेहद कष्टकारी साबित होगा। वर्तमान वैज्ञानिक युग में सभी क्षेत्रों में आधुनिकीकरण को दृष्टिगत रखते हुए मनुस्मृति की प्रासंगिकता पर बहुत बड़ा सवाल उठता है जिसके समाधान के लिए बहुसंख्यक समाज के बुद्धजीवियों और समाजसेवियों को एकजुट होकर आगे आना चाहिए। यदि समय रहते इससे प्रभावित होने वाले बहुसंख्यक समाज के जागरूक लोगों ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर गहन चिंतन-मनन नहीं किया तो भविष्य में उनकी आने वाली पीढ़ियों को दुर्दांत जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
राष्ट्रीय विकासवादी समता पार्टी (राविसपा) के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ0 विश्व नाथ मौर्य ने सपा - बसपा - भाजपा पर निशाना साधते हुए सच्चाई को बयां करते हुए कहा कि मनुवादग्रस्त सपा - बसपा - भाजपा के छद्म और घृणित सियासत से बहुसंख्यक समाज का विकास पूर्णतः अवरुद्ध ही रहा है। यह बहुसंख्यक समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस और भाजपा ने तो शुरुआत से ही उनके प्रति सदैव सौतेला व्यवहार किया। सामंतवादी विचारधारा वाली इन दोनों पार्टियों ने जातिगत और धर्मगत आधार पर समाज में ऊंचनीच का भेदभाव उत्पन्न करके पिछड़े - दलितों को उनके अधिकारों से हमेशा ही वंचित रखा और अपने षड्यंत्रकारी नीतियों के प्रयोग से उनके साथ सीमान्त अत्याचार और अन्यायपूर्ण व्यवहार किया जिससे कालांतर में त्रस्त होकर ही पिछड़े - दलितों ने सपा और बसपा का दामन थाम लिया था जिनके भरपूर समर्थन से ही सपा और बसपा दोनों को उप्र की सत्ता हासिल करने में कई बार सफलता भी मिली। किन्तु अफ़सोस है कि इसके बावजूद भी जहाँ सपा - बसपा के अनेकानेक आन्तरिक विसंगतियों के कारण बहुजन समाज का कोई कल्याण नहीं हो पाया तो वहीं भाजपा के द्वारा इन दोनों पार्टियों के हाथ से सत्ता भी छीन लिया गया। अब हैरत की बात यह है कि सत्ता में वापस आने के लिए जहाँ सपा और बसपा दोनों को अपने आंतरिक मतभेद, जातिवाद, वंशवाद, व्यक्तिवाद और अवसरवाद जैसे अनेकानेक विसंगतियों को दूर करने की आवश्यकता है वहाँ इन पार्टियों ने भी संघ - भाजपा के मनुवाद के प्रभाव में आकर अपनी हदें पार कर दिया है। कितनी विडम्बना है कि पिछड़े - दलितों के हितों का दम्भ भरने वाली सपा - बसपा दोनों ने हिन्दुत्व के प्रतीकचिन्ह रहे राम और परशुराम के पदचिन्हों पर चलने के लिए प्राथमिकता दिया है। इतना ही नहीं, सपा - बसपा में यदि कोई नेता गलती से अथवा जाने - अनजाने में समाज के विकास में प्रबल बाधकस्वरुप धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास के ख़िलाफ़ कोई वक्तव्य देता है तो उसे पार्टी से ही तुरन्त बर्खास्त कर दिया जाता है। इस क्रम में उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने पार्टी के समर्पित नेता लोटन राम को राम के काल्पनिक कहने पर पार्टी से बर्खास्त कर दिया है। जबकि वहीं समाज सुधारक रहे ललई यादव द्वारा रामायण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में चुनौती दी गयी थी कि रामायण और उसके सभी पात्र काल्पनिक हैं और इस पर सुप्रीम कोर्ट ने ललई यादव के पक्ष में अपना निर्णय भी दिया था। इसके अलावा लखनऊ में मुखमन्त्री सरकारी आवास से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी के निकलने के बाद अनुवर्ती भाजपा सरकार के द्वारा उनके शूद्र होने का कारण बताते हुए उनके आवास का शुद्धिकरण करवाया गया था। जातिगत आधार पर उनके साथ भाजपा सरकार द्वारा किया गया भेदभावपूर्ण और अमानवीय व्यवहार उनके सीमांत अपमान का ही द्योतक है। ऎसे में सपा मुखिया अखिलेश यादव को सबक लेना चाहिए किन्तु विपरीत इसके वह स्वयं भी संघ - भाजपा के मनुवाद के प्रभाव में आकर समाजवाद और मानवतावाद को ताख पर रखकर मनुवाद फैलाने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाते हुए न केवल स्वयं को अपितु समाजवादी पार्टी को ही भाजपा के तर्ज पर हिन्दुत्व, मनुवाद और पाखंडवाद का प्रबल समर्थक साबित किया जो बहुसंख्यक समाज के लिए बेहद चिंताजनक है।
राविसपा अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. विश्व नाथ मौर्य ने जोर देते हुए कहा कि सपा-बसपा - भाजपा और कांग्रेस पार्टियों में विद्यमान अनेकानेक राजनैतिक विसंगतियों के चलते हमारा बहुसंख्यक समाज देश की आजादी के 74 वर्ष के उपरांत भी हाशिये पर ही खड़ा है। अब पिछड़े - दलितों - वंचितों के हक हुकूफ़ को दिलाने के लिए राष्ट्रीय विकासवादी समता पार्टी आगे आयेगी और उन पर हो रहे अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद करेगी। उनकी पार्टी में संगठन के शिक्षित, सुयोग्य और कुशल पदाधिकारियों के द्वारा प्रदेश स्तर पर किए जा रहे पार्टी के प्रचार-प्रसार और जन जागरण के जरिए पिछड़े - दलितों - शोषितों को एकजुट करने का निरंतर प्रयास किया जा रहा है। यही कारण है कि सपा - बसपा - भाजपा के मनुवाद से त्रस्त बहुजनों का राविसपा में बढ़त भी निरंतर जारी है। विगत कुछ सप्ताह में ही बहुजन समाज के दर्जनों नेता पार्टी में बतौर संगठन पदाधिकारी शामिल हुए हैं और इस सप्ताहांत के पहले ही भिन्न-भिन्न जिले के 5 पदाधिकारियों ने भी जिम्मेदारी संभाला है। राविसपा के युवा प्रकोष्ठ में चयन समिति के द्वारा इंजीनियर दीपक कुमार को आजमगढ़ जिलाध्यक्ष, श्री ओम प्रकाश यादव को जौनपुर जिला महासचिव, श्री सौरभ प्रसाद को हरदोई जिला महासचिव, श्री मनजीत कुमार वर्मा को हरदोई जिला उपाध्यक्ष, इंजीनियर देवेन्द्र कुमार को हरदोई जिला सचिव के लिए मनोनयन किया गया है। पार्टी के संगठन विस्तार में उत्तर प्रदेश महासचिव प्रो. अरविंद मौर्य और लखनऊ मंडल के संगठन महासचिव इंजीनियर सीताराम सिंह कुशवाहा के नेतृत्व में जौनपुर जिलाध्यक्ष डॉ. मनीष मौर्य, हरदोई जिलाध्यक्ष इंजीनियर मोरध्वज वर्मा, लखीमपुर खीरी जिलाध्यक्ष डॉ. विनोद सिंह और जिला महासचिव डॉ. अशोक कुमार एवं लखनऊ जिलाध्यक्ष इंजीनियर उदय प्रकाश यादव समेत अन्य पदाधिकारियों का विशेष योगदान रहा है। पार्टी के सभी पदाधिकारियों ने नव नियुक्त पदाधिकारीगण का स्वागत करते हुए हार्दिक बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनाएँ व्यक्त किया है। राविसपा अध्यक्ष प्रो. विश्व नाथ मौर्य ने पार्टी के सभी पदाधिकारियों को सुझाव के साथ स्पष्ट दिशा - निर्देश दिया है कि वे कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी और तत्परता के साथ बहुसंख्यक समाज को जागरूक और एकजुट करने के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँ जिससे पार्टी को उनका भरपूर समर्थन मिलने से उनके हितों की रक्षा के लिए शोषित क्रांति की लहर उत्पन्न किया जा सके और राष्ट्रव्यापी जन आंदोलन के जरिए न केवल सत्ता परिवर्तन बल्कि व्यवस्था परिवर्तन की ओर आगे बढ़ा जा सके।
संवाददाता :- प्रेम कुमार
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