मेडिकल कॉलेजों में होगी माँ, नवजात एवं छोटे बच्चों के पोषण की विशेष सुविधा,।
एमआईवाईसीएन होगा कोर्स का हिस्सा ।
अलाइव एंड थराइव के सहयोग से राज्य स्तरीय कार्यशाला का आयोजन ।
बिहार के 6 मेडिकल कॉलेजों में कार्यक्रम की शुरुआत की गई ।
मेडिकल कॉलेजों में एमआईवाईसीएन सेवा में होगा सुधार ।
पटना,,विगत कुछ वर्षों में बिहार के स्वास्थ्य मानकों में सुधार हुआ है । मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी आई है । लेकिन अभी भी नवजात शिशु मृत्यु दर स्थिर है । वहीं दूसरी तरफ़ देश के अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में सबसे अधिक प्रतिशत बच्चे नाटापन के शिकार हैं । ऐसे कुछ आंकडें इस दिशा में अधिक ध्यान देने की जरूरत जो उजागर करते हैं । इसको लेकर माँ, नवजात एवं छोटे बच्चों के पोषण(एमआईवाईसीएन) सेवा की गुणवत्ता पर ध्यान देना एक अच्छी शुरुआत की तरफ़ इशारा है । विशेषकर राज्य के मेडिकल कॉलेज एवं अस्पतालों में एमआईवाईसीएन की सेवा को मजबूत करने की पहल प्रशंसनीय है । यह बातें प्रधान सचिव स्वास्थ्य विभाग संजय कुमार ने गुरूवार को शहर के एक होटल में अलाइव एंड थराइव के सहयोग से, मेडिकल कॉलेजों में एमआईवाईसीएन की सेवा के विस्तार पर आयोजित कार्यशाला के दौरान कही ।
संजय कुमार ने कहा स्वास्थ्यगत मुद्दों पर मेडिकल कॉलेजों को बेहतर नेतृत्व करने की जरूरत है । इसके लिए उन्हें विभिन्न स्वास्थ्य मुद्दों पर बेहतर अनुसंधान को आगे बढ़ाने की जरूरत होगी । बेहतर अनुसंधान, सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में विशेष मानक तैयार कर एमआईवाईसीएन के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकेगा । इसकी बेहतर पहल करने के लिए उन्होंने अलाइव एंड थराइव को धन्यवाद ज्ञापित किया ।
1200 चिकित्सा कर्मियों को प्रशिक्षण :-
अलाइव एंड थराइव के कंट्री डायरेक्टर डॉ. सेवंती घोष ने बताया की अलाइव एंड थराइव ने सरकार के सहयोग से, राज्य के 6 मेडिकल कॉलेजों में एमआईवाईसीएन सेवा की गुणवत्ता पर ध्यान दिया है । जिसमें पटना मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, दरभंगा मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल(मुजफ्फरपुर), अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (गया), एम्स(पटना) एवं नारायण मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल (सासाराम) शामिल है । इन मेडिकल कॉलेजों के 1200 चिकित्सा कर्मियों को एमआईवाईसीएन सेवा के सर्विस डिलीवरी प्रोटोकॉल एवं गुणवत्ता सुधार पर प्रशिक्षण दिया गया है । उन्होंने बताया मेडिकल कॉलेजों में भी मातृ, शिशु एवं छोटे बच्चों के बेहतर पोषण की सेवा को दुरुस्त करने की जरूरत है। बेसलाइन सर्वे में मेडिकल कॉलेज के 51 प्रतिशत हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट एवं टीचिंग फैकल्टी यह अनुभव करते हैं । कि मेडिकल कॉलेज में शिशु एवं छोटे बच्चों के पोषण पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है । जबकि 61 प्रतिशत हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट एवं टीचिंग फैकल्टी यह मानते हैं कि, मेडिकल कॉलेज में मातृ पोषण पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है । एमआईवाईसीएन सेवा पर अधिक ध्यान देने से बेहतर परिणाम सामने आयेंगे । कार्यशाला का संचालन अलाइव एंड थराइव के वरीय कार्यक्रम प्रबंधक डॉ. अनुपम श्रीवास्तव द्वारा किया गया ।
विशेषज्ञों ने दी राय :-
इस दौरान विभिन्न मेडिकल कॉलेज से आये चिकित्सक एवं टीचिंग फैकल्टी ने एमआईवाईसीएन सेवा को लेकर अपनी राय रखी । सीएमओ डिपार्टमेंट ऑफ़ कम्युनिटी मेडिसिन यूसीएमएस एवं जीटीबी डॉ. अनीता गुप्ता ने मेडिकल कॉलेज के वर्तमान अंडरग्रेजुएट कोर्स में एमआईवाईसीएन को जोड़ने की जरूरत पर विस्तार से जानकारी दी ।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के स्त्री रोग विभाग की हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट ,डॉ. किरण पाण्डेय ने विशेषज्ञ चिकित्सकों के पैनल डिस्कशन का संचालन करते हुए, बताया मेडिकल कॉलेज के फैकल्टी एमआईवाईसीएन से भली-भांति परिचित है । लेकिन इसमें दी गयी छोटी-छोटी चीजों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होगी । इस कार्यक्रम के सफ़ल क्रियान्वयन के लिए नियमित मॉनिटरिंग एवं सपोर्टिव सुपरविजन की सख्त जरूरत है । साथ ही कार्यक्रम के कुशल क्रियान्वयन में चुनौतियों पर प्रकाश डाला ।
हमदर्द इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज एवं रिसर्च, दिल्ली की विभागाध्यक्ष डॉ. रम्भा पाठक ने एमआईवाईसीएन सेवा को निति आयोग के नेतृत्व में, आईसीडीएस एवं जिला स्वास्थ्य इकाई से जोड़ने की जरूरत पर विस्तार से जानकारी दी । इसके लिए उन्होंने क्षेत्रीय स्तर के कार्यकर्ताओं के क्षमतावर्धन एवं नियमित क्षेत्र भ्रमण की जरूरत को बताया ।
इस दौरान डॉ. प्रवीण शर्मा प्रोजेक्ट डायरेक्टर अलाइव एंड थराइव बिहार एवं उत्तरप्रदेश , डॉ.लता शुक्ला प्रोफेसर एनएमसीएच, डॉ.एके श्रीवास्तव विभागाध्यक्ष शिशु विभाग एवं डॉ. प्रज्ञा कुमार एसोसिएट प्रोफेसर सीएफएम विभाग एम्स पटना के साथ ,अन्य टीचिंग फैकल्टी ने एमआईवाईसीएन सेवा के विस्तार पर अपनी राय दी ।
संवाददाता:- शीला चंद्रा
(मौर्या समाचार)
एमआईवाईसीएन होगा कोर्स का हिस्सा ।
अलाइव एंड थराइव के सहयोग से राज्य स्तरीय कार्यशाला का आयोजन ।
बिहार के 6 मेडिकल कॉलेजों में कार्यक्रम की शुरुआत की गई ।
मेडिकल कॉलेजों में एमआईवाईसीएन सेवा में होगा सुधार ।
पटना,,विगत कुछ वर्षों में बिहार के स्वास्थ्य मानकों में सुधार हुआ है । मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी आई है । लेकिन अभी भी नवजात शिशु मृत्यु दर स्थिर है । वहीं दूसरी तरफ़ देश के अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में सबसे अधिक प्रतिशत बच्चे नाटापन के शिकार हैं । ऐसे कुछ आंकडें इस दिशा में अधिक ध्यान देने की जरूरत जो उजागर करते हैं । इसको लेकर माँ, नवजात एवं छोटे बच्चों के पोषण(एमआईवाईसीएन) सेवा की गुणवत्ता पर ध्यान देना एक अच्छी शुरुआत की तरफ़ इशारा है । विशेषकर राज्य के मेडिकल कॉलेज एवं अस्पतालों में एमआईवाईसीएन की सेवा को मजबूत करने की पहल प्रशंसनीय है । यह बातें प्रधान सचिव स्वास्थ्य विभाग संजय कुमार ने गुरूवार को शहर के एक होटल में अलाइव एंड थराइव के सहयोग से, मेडिकल कॉलेजों में एमआईवाईसीएन की सेवा के विस्तार पर आयोजित कार्यशाला के दौरान कही ।
संजय कुमार ने कहा स्वास्थ्यगत मुद्दों पर मेडिकल कॉलेजों को बेहतर नेतृत्व करने की जरूरत है । इसके लिए उन्हें विभिन्न स्वास्थ्य मुद्दों पर बेहतर अनुसंधान को आगे बढ़ाने की जरूरत होगी । बेहतर अनुसंधान, सम्पूर्ण ज़िम्मेदारी एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में विशेष मानक तैयार कर एमआईवाईसीएन के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकेगा । इसकी बेहतर पहल करने के लिए उन्होंने अलाइव एंड थराइव को धन्यवाद ज्ञापित किया ।
1200 चिकित्सा कर्मियों को प्रशिक्षण :-
अलाइव एंड थराइव के कंट्री डायरेक्टर डॉ. सेवंती घोष ने बताया की अलाइव एंड थराइव ने सरकार के सहयोग से, राज्य के 6 मेडिकल कॉलेजों में एमआईवाईसीएन सेवा की गुणवत्ता पर ध्यान दिया है । जिसमें पटना मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, दरभंगा मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल, श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल(मुजफ्फरपुर), अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (गया), एम्स(पटना) एवं नारायण मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल (सासाराम) शामिल है । इन मेडिकल कॉलेजों के 1200 चिकित्सा कर्मियों को एमआईवाईसीएन सेवा के सर्विस डिलीवरी प्रोटोकॉल एवं गुणवत्ता सुधार पर प्रशिक्षण दिया गया है । उन्होंने बताया मेडिकल कॉलेजों में भी मातृ, शिशु एवं छोटे बच्चों के बेहतर पोषण की सेवा को दुरुस्त करने की जरूरत है। बेसलाइन सर्वे में मेडिकल कॉलेज के 51 प्रतिशत हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट एवं टीचिंग फैकल्टी यह अनुभव करते हैं । कि मेडिकल कॉलेज में शिशु एवं छोटे बच्चों के पोषण पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है । जबकि 61 प्रतिशत हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट एवं टीचिंग फैकल्टी यह मानते हैं कि, मेडिकल कॉलेज में मातृ पोषण पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है । एमआईवाईसीएन सेवा पर अधिक ध्यान देने से बेहतर परिणाम सामने आयेंगे । कार्यशाला का संचालन अलाइव एंड थराइव के वरीय कार्यक्रम प्रबंधक डॉ. अनुपम श्रीवास्तव द्वारा किया गया ।
विशेषज्ञों ने दी राय :-
इस दौरान विभिन्न मेडिकल कॉलेज से आये चिकित्सक एवं टीचिंग फैकल्टी ने एमआईवाईसीएन सेवा को लेकर अपनी राय रखी । सीएमओ डिपार्टमेंट ऑफ़ कम्युनिटी मेडिसिन यूसीएमएस एवं जीटीबी डॉ. अनीता गुप्ता ने मेडिकल कॉलेज के वर्तमान अंडरग्रेजुएट कोर्स में एमआईवाईसीएन को जोड़ने की जरूरत पर विस्तार से जानकारी दी ।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के स्त्री रोग विभाग की हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट ,डॉ. किरण पाण्डेय ने विशेषज्ञ चिकित्सकों के पैनल डिस्कशन का संचालन करते हुए, बताया मेडिकल कॉलेज के फैकल्टी एमआईवाईसीएन से भली-भांति परिचित है । लेकिन इसमें दी गयी छोटी-छोटी चीजों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होगी । इस कार्यक्रम के सफ़ल क्रियान्वयन के लिए नियमित मॉनिटरिंग एवं सपोर्टिव सुपरविजन की सख्त जरूरत है । साथ ही कार्यक्रम के कुशल क्रियान्वयन में चुनौतियों पर प्रकाश डाला ।
हमदर्द इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज एवं रिसर्च, दिल्ली की विभागाध्यक्ष डॉ. रम्भा पाठक ने एमआईवाईसीएन सेवा को निति आयोग के नेतृत्व में, आईसीडीएस एवं जिला स्वास्थ्य इकाई से जोड़ने की जरूरत पर विस्तार से जानकारी दी । इसके लिए उन्होंने क्षेत्रीय स्तर के कार्यकर्ताओं के क्षमतावर्धन एवं नियमित क्षेत्र भ्रमण की जरूरत को बताया ।
इस दौरान डॉ. प्रवीण शर्मा प्रोजेक्ट डायरेक्टर अलाइव एंड थराइव बिहार एवं उत्तरप्रदेश , डॉ.लता शुक्ला प्रोफेसर एनएमसीएच, डॉ.एके श्रीवास्तव विभागाध्यक्ष शिशु विभाग एवं डॉ. प्रज्ञा कुमार एसोसिएट प्रोफेसर सीएफएम विभाग एम्स पटना के साथ ,अन्य टीचिंग फैकल्टी ने एमआईवाईसीएन सेवा के विस्तार पर अपनी राय दी ।
संवाददाता:- शीला चंद्रा
(मौर्या समाचार)
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